किंजल के जनम दिवस पर
किंकिन मुखरित मधुकर गुंजन
मीन नयन में रचती अंजन
जब खुले केश करती अभिनन्दन
धर रूप अप्सरा देती सुख बंधन
सुर ताल आलाप बहार उचरती
मधुर राग मद मस्त विचरती
उत्श्रीन्कल सीमा में सीमित
कवि कल्पना साकार उतरती
सुकृत, सुबुध, सुप्रवीन, सुमंजुल
स्वछंद निर्झर सी बहती कल-कल
सुर नूपुरों से गुंजित प्रतिपल
ऐसी मेरी प्यारी किंजल