शनिवार, 14 अगस्त 2010

Kinjal

किंजल के जनम दिवस पर
किंकिन मुखरित मधुकर गुंजन
मीन नयन में रचती अंजन
जब खुले केश करती अभिनन्दन
धर रूप अप्सरा देती सुख बंधन

सुर ताल आलाप बहार उचरती
मधुर राग मद मस्त विचरती
उत्श्रीन्कल सीमा में सीमित
कवि कल्पना साकार उतरती

सुकृत, सुबुध, सुप्रवीन, सुमंजुल
स्वछंद निर्झर  सी बहती कल-कल
सुर नूपुरों से गुंजित प्रतिपल
ऐसी मेरी प्यारी किंजल