विरह वेदना
अंसुवन से गीली धरती पर
बिलख रहे हैं मेरे गीत
मद्धम होने लगा सुनो तो
मेरी साँसों का संगीत
विरह की अग्नि में जल कर
भस्म हो गयी कंचन काया
बार एक यह बतला दो
कब आओगे मन के मीत
संग मरण के बुने जो सपने
सांस तोड़ते सिसके-सिसके
तुम आओ तो जीवन जी लूं
चुपके कहती अनबोली प्रीत
गुंजन करती यह ख़ामोशी
मन को समझाये बारम्बार
रच डालें संसार नया एक
ना निभ पाए इस जग की रीत