भस्मासुर
लिया जब केशव ने मोहिनी रूप
हुए तृप्त देवों के भूप
मन मुदित हुए बोले अविनाशी
अब हुई धरा भस्मासुर प्यासी
दिल क्रोधातुर लिए रक्त उबाल
लिए साथ आकर्षण ढाल
बांकी चितवन मोहिनी चाल
वध करने को तैयार काल
धंसे धरा हिल उठे गगन
नाचे दोनों हुए मगन
जान सुनहरा उचित सुअवसर
धरा केशव ने हाथ शीश पर
भस्म हुआ भस्मासुर तब फिर
दर्प हुया सब चकनाचूर
करने लगा क्षमा प्रार्थना
अब ना होगी मुझ से भूल
चिर पुरातन की यह गाथा
आज भी है किंतनी प्रयत्क्ष
गिरिजा वरने को लालायित
आज हुया फिर भस्मासुर
पर आयेगा ना कोई माधव
ना ही धरेगा मोहिनी रूप
रखने को स्वाभिमान सुरक्षित
बनना होगा शक्ति स्वरुप