प्रचेतस
श्यामल वरण मनोहर सुंदर
धरे शीश पर कुंचित केश
लब पर मधु मुस्कान मनोहर
जैसे माधव का मानव वेष
कलाकार की जैसी कल्पना
लक्ष्य सजाती नया हर बार
शौरज, धीरज का समयौजन
तुम्हे कराता वह स्वीकार
अवसादों के तम को हरने
आये बन कर तेजस तुम
बन पौरष , वैभव ,सुमति के स्वामी
कहलाते प्रचेतस तुम