आंसू बन गये पत्थर
सूख गया आशा का समुंदर
आंसू बन गए पत्थर
सूनी आँखें पंथ निहारें
कब तक बोलो कब तक
पिक का पंचम मौन हुआ है
सन्नाटा बगिया में छाया
सूखे बौर अमवा मुरझाया
नीरज मुख कैसे कुह्म्लाया
स्नेह सुधा को मन तरसाए
चातक मन भी आस लगाए
शुष्क धरा की प्यास बुझेगी
बरसो मेहां बन कर
कब तक बोलो कब तक