मित्रता
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
मित्रता का यह एहसास
मैं हूँ हमेशा तेरे आसपास
मन में भरता नया विश्वास
कितना सुंदर यह एहसास
जगतीतल के हर नर जन को
क्यों नया यह पैगाम सुनाते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
जीवन सहज सुखद हो जाता
सुंदर नया गीत सजाता
मन मयूर गाता मुस्काता
दुर्गम पथ मंजिल हो जाता
विश्व के सारे कोने कोने
क्यों ना यह सन्देश पहुंचाते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते