शनिवार, 14 अगस्त 2010

Mitreta

         मित्रता
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
मित्रता का यह एहसास
मैं हूँ हमेशा तेरे आसपास
मन में भरता नया विश्वास
कितना सुंदर यह एहसास

जगतीतल के हर नर जन को
क्यों नया यह पैगाम सुनाते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते

जीवन सहज सुखद हो जाता
सुंदर नया गीत सजाता
मन मयूर गाता मुस्काता
दुर्गम पथ मंजिल हो जाता

विश्व के सारे कोने कोने
क्यों ना यह सन्देश पहुंचाते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते