खो गया रे मेरा बचपन
तुम क्या रूठे ,सब जग रूठा
पीहर से भी नाता छूटा
देख विषमता मनोबल टूटा
कैसी यह जीवन की उलझन
खो गया रे मेरा बचपन
आज फूल भी लगे शूल सा
तप्त लगें नम हवा के झोंके
सब के गल का फांस बन गयी
जो थी हर एक दिल की धड़कन
खो गया रे मेरा बचपन
काल चक्र यूं चलता जाए
अमिट छाप यूं गढ़ता जाए
मस्तक की धुंधली रेखाएं
होने ना देती परिवर्तन
खो गया रे मेरा बचपन