रविवार, 15 अगस्त 2010

kaise likhoon

कैसे लिखूं

उर की बात कहूं कैसे
   कैसे जिह्वा तक लायूं मैं
       कैसे झेलूँ मन संताप
        कैसे मन को समझाऊँ मैं
निज रोदन को राग बनाया
      तार सप्तक से स्वर मिलाया
        हृदय वेदना कम करने को
           नयनों ने फिर नीर बहाया
कंठ हुया अवरुद्ध जान
     भावों को लेखन ने संभाला
           भावों की पीड़ा को अनुभव कर
               लेखन भी निस्तेज हो गया
अब तुम्ही कहो मैं कैसे लिखूं