कैसे लिखूं
उर की बात कहूं कैसे
कैसे जिह्वा तक लायूं मैं
कैसे झेलूँ मन संताप
कैसे मन को समझाऊँ मैं
निज रोदन को राग बनाया
तार सप्तक से स्वर मिलाया
हृदय वेदना कम करने को
नयनों ने फिर नीर बहाया
कंठ हुया अवरुद्ध जान
भावों को लेखन ने संभाला
भावों की पीड़ा को अनुभव कर
लेखन भी निस्तेज हो गया
अब तुम्ही कहो मैं कैसे लिखूं