तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
तुम ने तो उन्मुक्त गगन में
कलरव करते देखे पक्षी
दिन भर करते क्रीडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो खग कैसे सोता
क्या जानो खग कैसे रोता
कहीं दूर वह दाना चुगने
दिन भर उड़ता फुगने फुगने
सांझ ढले तो चले चाँद संग
ढूंढें अपना नीड़ा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो मिलने को तड़पे
क्या जानो वह मिल कर तड़पे
सारा दिन वह व्याकुल रहता
हर आहट पर चौंक के उठता
चौंच उठाये वह राहें तकता
भूले अपनी ईडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा