रविवार, 15 अगस्त 2010

Tum kya jaano hridye ki peeda

तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा

तुम ने तो उन्मुक्त गगन में
  कलरव करते देखे पक्षी
        दिन भर करते क्रीडा
           तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो खग कैसे सोता
    क्या जानो खग कैसे रोता
       कहीं दूर वह दाना चुगने
           दिन भर उड़ता फुगने फुगने
             सांझ ढले तो चले चाँद संग
                ढूंढें अपना नीड़ा
              तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो मिलने को तड़पे
    क्या जानो वह मिल कर तड़पे
        सारा दिन वह व्याकुल रहता
          हर आहट पर चौंक के उठता
            चौंच उठाये वह राहें तकता
               भूले अपनी ईडा
                तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा