शनिवार, 21 अगस्त 2010

ek khwaab

एक ख्वाब
जो हकीकत मान बैठी थी जिंदगी
हर एक रूह में
खुद को ढूँढती थी जिंदगी
साबुत दर्पण में
टूटे बिम्ब से यह एहसास हुआ
कि टूटे दर्पण में
अपना बिम्ब जोड़ती थी जिंदगी