वक़्त की महत्ता
वक़्त की फैली लम्बी चादर
कटती है जब धीरे धीरे
रेशे जैसा हर एक पल
फटता है तब धीरे धीरे
ज्ञान नहीं होता तब हम को
टूट रहे पल के रेशों का
बना देते सन्दर्भ बिगड़ते
सिहं तुला कन्या मेषों का
पकड़ नहीं पाते हम तब
तार तार से वक़्त के धागे
पीछे रह जाते तब दौड़ में
चाहे कितना भी जोर से भागें
रह जाती जब चादर आधी
और ना तन ढकने को काफ़ी
होती है तब खींचा-तानी
ना तुमने कही ना मैंने मानी
चादर वक़्त की ना फटने पाए
पल के रेशे ना टूटें जाए
आने वाले हर एक पल में
आओ यह संकल्प दोहरायें
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
nav varsh mangalmay ho
नव वर्ष मंगल मय हो
हर सुबह आकर सरगम बनाये नयी
मीठी तान गा कर रात सुलाए कोई
पूनम सा दिन हो महकती शाम हो
नियामतो की बख्शीश आठों याम हो
इरादे बुलंद हों हौंसलें बुलंद हो
साथ हो अपनों का उड़ान स्वछंद हो
पंख अब फैलाओगे , दूर उड़ जाओगे
क्षितिज की सीमा हो आकाश अनंत हो
सृजन हो नव सपनों का आने वाले इस कल में
सपने हो साकार सभी ,आने वाले हर पल में
नूतन आशा ,नूतन अभिलाषा और बढे नव हर्ष
नव रंग का मिश्रण हो जीवन , मंगल मय हो नव वर्ष
हर सुबह आकर सरगम बनाये नयी
मीठी तान गा कर रात सुलाए कोई
पूनम सा दिन हो महकती शाम हो
नियामतो की बख्शीश आठों याम हो
इरादे बुलंद हों हौंसलें बुलंद हो
साथ हो अपनों का उड़ान स्वछंद हो
पंख अब फैलाओगे , दूर उड़ जाओगे
क्षितिज की सीमा हो आकाश अनंत हो
सृजन हो नव सपनों का आने वाले इस कल में
सपने हो साकार सभी ,आने वाले हर पल में
नूतन आशा ,नूतन अभिलाषा और बढे नव हर्ष
नव रंग का मिश्रण हो जीवन , मंगल मय हो नव वर्ष
do premi
दो प्रेमी
दोनों ही पागल प्रेमी थे
संग वक्त गुजारा करते थे
जीवन के बदरंग पन्नो पर
रंग उतारा करते थे
संध्या की काली घिरने से
उषा की लाली चढ़ने तक
बिछी रेत की चादर पर
कुछ शब्द उभारा करते थे
सागर की बहती लहरों में
बनते -, मिटते थे रोज़ लेख
जीवन के बहते दरिया में
पर बदल ना पाए भाग्य रेख
दुनिया की बहती भाग-दौड़ में
साथ हमेशा से छूट गये
नाजुक मन से दोनों थे
दिल कांच की जैसे टूट गये
दोनों ही पागल प्रेमी थे
संग वक्त गुजारा करते थे
जीवन के बदरंग पन्नो पर
रंग उतारा करते थे
संध्या की काली घिरने से
उषा की लाली चढ़ने तक
बिछी रेत की चादर पर
कुछ शब्द उभारा करते थे
सागर की बहती लहरों में
बनते -, मिटते थे रोज़ लेख
जीवन के बहते दरिया में
पर बदल ना पाए भाग्य रेख
दुनिया की बहती भाग-दौड़ में
साथ हमेशा से छूट गये
नाजुक मन से दोनों थे
दिल कांच की जैसे टूट गये
khwahish
ख्वाहिश
खतों -खितावत से ना मिटती है तेरे दीदार की ख्वाहिश
जी चाहता है कि अब तुझ को आगोश में भर लें
और पी लें तेरी इन झुकी मस्त निगाहों के प्याले
बिन छुए मय को , खुद अपने को मदहोश कर लें
वादे पे तेरे हम सब्र किये जाते हैं ऐ साकी
डरते है कि कही तू वादा फरामोश ना कर ले
सजदे में झुका देंगे सिर अपना तेरी मोहब्बत के आगे
याँ फिर वजूद को हम अपने फ़रोश ही कर लें
खतों -खितावत से ना मिटती है तेरे दीदार की ख्वाहिश
जी चाहता है कि अब तुझ को आगोश में भर लें
और पी लें तेरी इन झुकी मस्त निगाहों के प्याले
बिन छुए मय को , खुद अपने को मदहोश कर लें
वादे पे तेरे हम सब्र किये जाते हैं ऐ साकी
डरते है कि कही तू वादा फरामोश ना कर ले
सजदे में झुका देंगे सिर अपना तेरी मोहब्बत के आगे
याँ फिर वजूद को हम अपने फ़रोश ही कर लें
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
mohabbat
मोहब्बत
क्यों ना हो गुमान यूं अपनी मोहब्बत का ऐ दोस्त
मोहब्बत करने वाले ही खाकसार हुआ करते है
यह हकीकत है कि जिसने भी की अकीदत यहाँ
जमाने भर के पीकर गम भी आबाद हुआ करते हैं
कभी ख्वाब में भी ना गुज़रे पल एक भी जुदाई का
जुदा हो भी जाए तो भी मोहब्बत किया करते हैं
मोहब्बत चीज़ क्या है यह तुम उनसे पूछो ए दोस्त
जो दफ़न हो जाने के बाद भी मोहब्बत से जिया करते हैं
क्यों ना हो गुमान यूं अपनी मोहब्बत का ऐ दोस्त
मोहब्बत करने वाले ही खाकसार हुआ करते है
यह हकीकत है कि जिसने भी की अकीदत यहाँ
जमाने भर के पीकर गम भी आबाद हुआ करते हैं
कभी ख्वाब में भी ना गुज़रे पल एक भी जुदाई का
जुदा हो भी जाए तो भी मोहब्बत किया करते हैं
मोहब्बत चीज़ क्या है यह तुम उनसे पूछो ए दोस्त
जो दफ़न हो जाने के बाद भी मोहब्बत से जिया करते हैं
मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
geet tumhare hain
गीत तुम्हारे है
कैसे कह दूं कि
मेरे गीतों में तुम ही बसे हो
कैसे कह दूं कि हर एक
हर्फ़ में अक्स है तेरा
कैसे कह दूं कि हर एक
धुन में साज है तेरा
तुम से ही तो गीत जवान हुए है
गीत उसाँसे थे अब तक जो मैंने पाले
गीत प्यासे थे अब तक जो मैंने रखे संभाले
हर गीत की चाहत में तुम चाहत बन कर आये
हर गीत की देहरी पर तुम आहट बन कर आये
यह गीत तुम्हारे है तुम से ही उपजे है
यह गीत वोह सारे हैं , करते तुम को सिजदे हैं
कैसे कह दूं कि
मेरे गीतों में तुम ही बसे हो
कैसे कह दूं कि हर एक
हर्फ़ में अक्स है तेरा
कैसे कह दूं कि हर एक
धुन में साज है तेरा
तुम से ही तो गीत जवान हुए है
गीत उसाँसे थे अब तक जो मैंने पाले
गीत प्यासे थे अब तक जो मैंने रखे संभाले
हर गीत की चाहत में तुम चाहत बन कर आये
हर गीत की देहरी पर तुम आहट बन कर आये
यह गीत तुम्हारे है तुम से ही उपजे है
यह गीत वोह सारे हैं , करते तुम को सिजदे हैं
tum aaye to jeevan badla
तुम आए तो जीवन बदला
एक आग धधकती थी सीने में
ना शोला बनी , ना बुझी कभी
एक चाह सी उठती थी मन में
ना दफ़न हुई, ना दर्द बनी
एक नाम उभरता था लब पर
जो सुना नहीं , ना कहा कभी
अहसासों का दरिया चुप था
अनुभव की लहर थी दबी दबी
जी तो रहे थे ,पर जिन्दा कब थे
साँसों की गति थी थमी थमी
तुम आये तो जीवन बदला
पतझर थी, जो बहार बनी
एक आग धधकती थी सीने में
ना शोला बनी , ना बुझी कभी
एक चाह सी उठती थी मन में
ना दफ़न हुई, ना दर्द बनी
एक नाम उभरता था लब पर
जो सुना नहीं , ना कहा कभी
अहसासों का दरिया चुप था
अनुभव की लहर थी दबी दबी
जी तो रहे थे ,पर जिन्दा कब थे
साँसों की गति थी थमी थमी
तुम आये तो जीवन बदला
पतझर थी, जो बहार बनी
yakeen
यकीन
कितना मिलते थे हम रोज़ ना जाने क्या हुआ
बिछड़ गए अचानक ,अक्सर सोचते है कि
नाम गर कभी आएगा जुबान पर मेरा
तो क्या संभाल लोगे जिगर अपना?
रूबरू जब कभी होगा मेरा साया तुमसे
तो कर पायगे अलग वजूद अपना?
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को दामन पकड़ कर बुलाना
ना बदला होगा मेरा वोह दामन झटक कर छुड़ाना
ना बदला होगा तेरा वोह नज़र से नज़र मिलाना
ना बदला होगा मेरा वोह तुम से नज़रे बचाना
बात बात पर चहकना , इतराना, और रूठ जाना
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को यूं बुलाना
बिछड़ने के बाद भी है यह मुझ को यकीं
हम तुम कही दूर नहीं, बस आस-पास है कहीं
कितना मिलते थे हम रोज़ ना जाने क्या हुआ
बिछड़ गए अचानक ,अक्सर सोचते है कि
नाम गर कभी आएगा जुबान पर मेरा
तो क्या संभाल लोगे जिगर अपना?
रूबरू जब कभी होगा मेरा साया तुमसे
तो कर पायगे अलग वजूद अपना?
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को दामन पकड़ कर बुलाना
ना बदला होगा मेरा वोह दामन झटक कर छुड़ाना
ना बदला होगा तेरा वोह नज़र से नज़र मिलाना
ना बदला होगा मेरा वोह तुम से नज़रे बचाना
बात बात पर चहकना , इतराना, और रूठ जाना
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को यूं बुलाना
बिछड़ने के बाद भी है यह मुझ को यकीं
हम तुम कही दूर नहीं, बस आस-पास है कहीं
रविवार, 26 दिसंबर 2010
kitaaben
किताबें
सब से अच्छा दोस्त है किताबें
न कुछ मांगती है
ना कुछ शिकायत करती हैं
अपने चाहने वालो को हमेशा देती है
मुंह फेर लो रूठती नहीं
पास चले जायो तो दुत्कारती नहीं
अज्ञानी का उपहास नहीं उड़ाती
बस हर दम अपने सब कुछ न्योछावर करने को उद्यत
सब से अच्छा दोस्त है किताबें
न कुछ मांगती है
ना कुछ शिकायत करती हैं
अपने चाहने वालो को हमेशा देती है
मुंह फेर लो रूठती नहीं
पास चले जायो तो दुत्कारती नहीं
अज्ञानी का उपहास नहीं उड़ाती
बस हर दम अपने सब कुछ न्योछावर करने को उद्यत
शनिवार, 25 दिसंबर 2010
Aasha ka aagman
आशा का आगमन
आने वाली हर सुबह को सलाम
उठने वाली हर लहर को सलाम
बहती पवन के कण-कण को सलाम
धरा के चक्र को सलाम
आती ऋतुओं का स्वागत है
हर नई कोंपल का सत्कार
टिम टिम तारे का स्वागत है
दूज के चाँद का सत्कार
आशा की चादर को ओढ़े
हर एक पल को नमस्कार
जीवन को रौशन करने वाले
हर एक दीप का है सत्कार
गहन निराशा की खोह से
प्रस्स्फुटित हुई आशा की किरने
प्राची, जल,थल,नभ,पाताल के
जर्रे- जर्रे को सलाम
आने वाली हर सुबह को सलाम
उठने वाली हर लहर को सलाम
बहती पवन के कण-कण को सलाम
धरा के चक्र को सलाम
आती ऋतुओं का स्वागत है
हर नई कोंपल का सत्कार
टिम टिम तारे का स्वागत है
दूज के चाँद का सत्कार
आशा की चादर को ओढ़े
हर एक पल को नमस्कार
जीवन को रौशन करने वाले
हर एक दीप का है सत्कार
गहन निराशा की खोह से
प्रस्स्फुटित हुई आशा की किरने
प्राची, जल,थल,नभ,पाताल के
जर्रे- जर्रे को सलाम
phool sa vyktitv
फूल सा व्यक्तित्व
फूल सा व्यक्तित्व है उसका
करता है आकर्षित सबको
एक शूल चुबता है तुमको
तो क्या खुशबू खो देगा ?
फूल तो आखिर फूल रहे गा
शीश चढाओ या ठुकराओ
कोमलता में सर्वोपरि है
चाहे कितने भी शूल गिनाओ
तुम चाहे इनका करो ना सिंचन
यह तो महक फैलाएगा
कर लो कितना भी जीवन मंथन
ऐसा सौरभ कही ना मिल पायेगा
फूल सा व्यक्तित्व है उसका
करता है आकर्षित सबको
एक शूल चुबता है तुमको
तो क्या खुशबू खो देगा ?
फूल तो आखिर फूल रहे गा
शीश चढाओ या ठुकराओ
कोमलता में सर्वोपरि है
चाहे कितने भी शूल गिनाओ
तुम चाहे इनका करो ना सिंचन
यह तो महक फैलाएगा
कर लो कितना भी जीवन मंथन
ऐसा सौरभ कही ना मिल पायेगा
jaane wala chala gya
जाने वाला चला गया
जाने वाला चला गया
हर पल को चुरा कर चला गया
यादो में गुज़रे अब हर पल
हर पल को रुला कर चला गया
किया था उसको रुखसत मैंने
कुछ मन से कुछ बेमन से
जाने कौन ,यहाँ क्या था उसका
सारे घर को लेकर चला गया
मिलेगा कभी कहीं किसी रोज़
पूछेंगे उससे किस्सा- ए- दिल
कैसे काटे है उसने भी दिन
दिल यहाँ छोड़ के चला गया
जाने वाला चला गया
हर पल को चुरा कर चला गया
यादो में गुज़रे अब हर पल
हर पल को रुला कर चला गया
किया था उसको रुखसत मैंने
कुछ मन से कुछ बेमन से
जाने कौन ,यहाँ क्या था उसका
सारे घर को लेकर चला गया
मिलेगा कभी कहीं किसी रोज़
पूछेंगे उससे किस्सा- ए- दिल
कैसे काटे है उसने भी दिन
दिल यहाँ छोड़ के चला गया
jaadaa
जाड़ा ( सर्दी का मौसम )
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
धुंध और कोहरे से लिपटा
मद्धम हो सूरज भी सिमटा
गर्माहट हर पल तरसता
दिन भर बर्फाना ठिठुरता
रात को आग का देता भाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
कामकाज हो जाता सारा ठप्प
चाय के साथ बस होता गपशप
लम्बे कोट पहन सडको पर
हिम से खेले सब वृद्ध युवा जन
बड़े उत्साह का एक नगाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
हम भी तब थे छोटे छोटे
पहन गरम दस्ताने , मौजे
माँ की नज़र बचा कर के
चढ़ जाते घर के परकोटे
देवदार से लम्बे हो कर
छूते सूरज का चौबारा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
धुंध और कोहरे से लिपटा
मद्धम हो सूरज भी सिमटा
गर्माहट हर पल तरसता
दिन भर बर्फाना ठिठुरता
रात को आग का देता भाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
कामकाज हो जाता सारा ठप्प
चाय के साथ बस होता गपशप
लम्बे कोट पहन सडको पर
हिम से खेले सब वृद्ध युवा जन
बड़े उत्साह का एक नगाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
हम भी तब थे छोटे छोटे
पहन गरम दस्ताने , मौजे
माँ की नज़र बचा कर के
चढ़ जाते घर के परकोटे
देवदार से लम्बे हो कर
छूते सूरज का चौबारा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा
virh
विरह
जब पूनम की ज्योति से धुल कर
रजनी आँचल फैलाती है
जब पवन सुरीली बाँसुरिया
तरु पल्लव से बजवाती है
प्रीत पिया के स्निग्ध स्पर्श की
चाहत को अकुलाती है
विहरन वेन गीत मिलन के
रात रात भर गाती है
ऐसे में प्रेमी विलग मन
दर्द बटोरा करते हैं
शबनम के नन्हे कतरों से ,
शोलों को ठंडा करतें हैं
जब पूनम की ज्योति से धुल कर
रजनी आँचल फैलाती है
जब पवन सुरीली बाँसुरिया
तरु पल्लव से बजवाती है
प्रीत पिया के स्निग्ध स्पर्श की
चाहत को अकुलाती है
विहरन वेन गीत मिलन के
रात रात भर गाती है
ऐसे में प्रेमी विलग मन
दर्द बटोरा करते हैं
शबनम के नन्हे कतरों से ,
शोलों को ठंडा करतें हैं
गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
vaade to toota karte hain
वादे तो टूटा करते हैं
वादों की बात क्या करते हो
वादे टूटा ही करते है
कच्चे सपनो के महलों जैसे
टूट के बिखरा करते हैं
बिखरी किरमिच को चुनते समय
जब कंकर चुभते हाथों में
तब दर्द उभरता सीने में
और अश्रु बहते आँखों से
स्वर पीड़ा के मुखरित होते
जब दर्द पिघलता अनायास
दिल तो मोम है पिघले गा ही
टीस उठते है तब पाषण
वादों की बात क्या करते हो
वादे टूटा ही करते है
कच्चे सपनो के महलों जैसे
टूट के बिखरा करते हैं
बिखरी किरमिच को चुनते समय
जब कंकर चुभते हाथों में
तब दर्द उभरता सीने में
और अश्रु बहते आँखों से
स्वर पीड़ा के मुखरित होते
जब दर्द पिघलता अनायास
दिल तो मोम है पिघले गा ही
टीस उठते है तब पाषण
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
baat ki baat
बात की बात
बातों बातों में बात चली
बात की बात को लगी भली
फिर बातें बातों में होने लगी
कुछ बातें रह गयी अनकही
सोचा मिलें तो बात करें
बात बात में सवाल करें
मुलाकात की बात हुई
बात करें जब रात हुई
पल में बीती लम्बी रात
बात बात में हुई ना बात
दिल की दिल में रह गई बात
अनबोली ना समझी बात
बातों बातों में बात चली
बात की बात को लगी भली
फिर बातें बातों में होने लगी
कुछ बातें रह गयी अनकही
सोचा मिलें तो बात करें
बात बात में सवाल करें
मुलाकात की बात हुई
बात करें जब रात हुई
पल में बीती लम्बी रात
बात बात में हुई ना बात
दिल की दिल में रह गई बात
अनबोली ना समझी बात
रविवार, 19 दिसंबर 2010
mamta ki janjeer
ममता की जंजीर
देख कर जुल्मो-सितम इस जगत के
उठते है बवंडर तब इस शांत मन मे
मन का हारिल विरक्त हो तब दूर नभ मे
उड़ कर कही स्वयं से दूर जाना चाहता है
कैद कर नहीं रख पाती उसे सोने की दीवार
रोक नहीं पाती किसी के चाहत के दीदार
बहला नहीं पाती उसे कोई भी तक़रीर
सहला नहीं जाती किसी के प्यार की तस्वीर
टूट जाते है सब बंधन बस एक ही पल में
बाँध पाती है उसे तो बस ममता की जंजीर
देख कर जुल्मो-सितम इस जगत के
उठते है बवंडर तब इस शांत मन मे
मन का हारिल विरक्त हो तब दूर नभ मे
उड़ कर कही स्वयं से दूर जाना चाहता है
कैद कर नहीं रख पाती उसे सोने की दीवार
रोक नहीं पाती किसी के चाहत के दीदार
बहला नहीं पाती उसे कोई भी तक़रीर
सहला नहीं जाती किसी के प्यार की तस्वीर
टूट जाते है सब बंधन बस एक ही पल में
बाँध पाती है उसे तो बस ममता की जंजीर
mujhe tum yaad karna
मुझे तुम याद करना
जब भी मुश्किल में तुम आओ
मुझे तुम याद करना
स्थिति जब भी प्रतिकूल पाओ
मुझे तुम याद करना
बन कर हल हर प्रश्न का
बन कर आऊँ गा मैं
बन कर ढाल हर मुसीबत के
समक्ष खड़ा हो जाऊंगा मैं
तुम बन कर रहो 'नीरज'
इस जीवन के तरन ताल में
भंवर उठे कभी जब भी
तो बस जान लो इतना
झेलने को तूफ़ान
चट्टान बन जाऊं गा मैं
यह मत सोचो कि रिश्ता
मेरा तुम से चिर पुराना है
रहे है अजनबी ता उम्र
नहीं कोई फ़साना है
एक तार स्नेह का
मुझ को तुम से जोड़ता है
एक दीप तम का
जो हर दिशा को मोड़ता है
इसलिए बस बार इक
मैं बोलता हूँ
तुम तक पहुंची हर बला
को तोलता हूँ
और फिर कहता यही हूँ कि
डगर हो अगर अनजान तो
मुझे तुम याद करना
लगे जब कठिन पंथ और काज
मुझे तुम याद करना
जब भी मुश्किल में तुम आओ
मुझे तुम याद करना
स्थिति जब भी प्रतिकूल पाओ
मुझे तुम याद करना
बन कर हल हर प्रश्न का
बन कर आऊँ गा मैं
बन कर ढाल हर मुसीबत के
समक्ष खड़ा हो जाऊंगा मैं
तुम बन कर रहो 'नीरज'
इस जीवन के तरन ताल में
भंवर उठे कभी जब भी
तो बस जान लो इतना
झेलने को तूफ़ान
चट्टान बन जाऊं गा मैं
यह मत सोचो कि रिश्ता
मेरा तुम से चिर पुराना है
रहे है अजनबी ता उम्र
नहीं कोई फ़साना है
एक तार स्नेह का
मुझ को तुम से जोड़ता है
एक दीप तम का
जो हर दिशा को मोड़ता है
इसलिए बस बार इक
मैं बोलता हूँ
तुम तक पहुंची हर बला
को तोलता हूँ
और फिर कहता यही हूँ कि
डगर हो अगर अनजान तो
मुझे तुम याद करना
लगे जब कठिन पंथ और काज
मुझे तुम याद करना
शनिवार, 18 दिसंबर 2010
vishwas pyaar ka
विश्वास प्यार का
लेख हमने जो लिखे जीवन के पन्नो पर
दावा है मेरा कि तुम वह सब मिटा ना पायोगे
करोगे जितना भी जतन हमसे दूर जाने का
उतना ज्यादा तुम हमे पास अपने पायोगे
लाख चाहे बंद करो तुम कान अपने
गीत मेरे भाव के दिल में गुंजाते पायोगे
तड़प उठोगे स्वयं को देख कर तन्हा
"प्यार कहते है किसे" तब स्वयं ही जान जायोगे
लेख हमने जो लिखे जीवन के पन्नो पर
दावा है मेरा कि तुम वह सब मिटा ना पायोगे
करोगे जितना भी जतन हमसे दूर जाने का
उतना ज्यादा तुम हमे पास अपने पायोगे
लाख चाहे बंद करो तुम कान अपने
गीत मेरे भाव के दिल में गुंजाते पायोगे
तड़प उठोगे स्वयं को देख कर तन्हा
"प्यार कहते है किसे" तब स्वयं ही जान जायोगे
dooriyaa
दूरियां
सृजन की तूलिका ने फिर गमक की तान छेड़ दी.
विरह की वेदना ने मिलन की हर आस भेद दी
उठे जब भी कदम तुम्हारी तरफ तुमसे मिलने को
इस जग के लोगो ने इड़ा की झूठी शान घेर दी
बढे अब फांसले कुछ इस तरह दरमियाँ दोनों के
कि साथ रह कर भी प्रिया अजानी छाप बन गयी
ना समझे थे ना समझोगे तुम ऐ जहां वालो
दूरी बीच दोनों की तुम्हारी नज़र की माप बन गयी
.
सृजन की तूलिका ने फिर गमक की तान छेड़ दी.
विरह की वेदना ने मिलन की हर आस भेद दी
उठे जब भी कदम तुम्हारी तरफ तुमसे मिलने को
इस जग के लोगो ने इड़ा की झूठी शान घेर दी
बढे अब फांसले कुछ इस तरह दरमियाँ दोनों के
कि साथ रह कर भी प्रिया अजानी छाप बन गयी
ना समझे थे ना समझोगे तुम ऐ जहां वालो
दूरी बीच दोनों की तुम्हारी नज़र की माप बन गयी
.
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
muskaan meri samptti
मुस्कान मेरी सम्पत्ति
सूरज का उगना
चंदा का छुपना
तारों का टिमटिमाना
ऋतुओं का चक्र
धरती का यूं घूमना
और घुमाना
नन्हे बीज का अंकुरित होना
सागर का नन्ही बूंदे बन कर
यूं उड़ जाना
बादल बन कर धरती पर फिर बरस जाना
क्या यह सब प्रक्रिया है ?
एक रहस्य अनदेखा, अनबोला
जिसको हर मानव ने झेला
पाला पोसा और महसूसा
किया स्वीकार हर एक अजूबा
है असंभव बदलना स्वभाव नियति का
पर है स्वयं दाता वह मुस्कान अपनी का
सूरज का उगना
चंदा का छुपना
तारों का टिमटिमाना
ऋतुओं का चक्र
धरती का यूं घूमना
और घुमाना
नन्हे बीज का अंकुरित होना
सागर का नन्ही बूंदे बन कर
यूं उड़ जाना
बादल बन कर धरती पर फिर बरस जाना
क्या यह सब प्रक्रिया है ?
एक रहस्य अनदेखा, अनबोला
जिसको हर मानव ने झेला
पाला पोसा और महसूसा
किया स्वीकार हर एक अजूबा
है असंभव बदलना स्वभाव नियति का
पर है स्वयं दाता वह मुस्कान अपनी का
rahsya jeevan ka
रहस्य जीवन का
जीवन को करीब से देखने की
हर कोशिश
मुझे जीवन से हर बार
कोसों दूर ले जाती है
और छोड़ देती है
एक ऐसी ऊँचाई पर
जहां से हर आदमी बौना नज़र आता है
सुख-दुःख ख़ुशी-गम के आवरण
झीने जान पड़ते हैं
मन को टटोलती हूँ
श्वसन को बटोरती हूँ
और फिर सोचती हूँ
जीवन एक रहस्य है-
इसे राज ही रहने दें.
जैसे सब बहते हैं
वैसे ही बहने दें.
जीवन को करीब से देखने की
हर कोशिश
मुझे जीवन से हर बार
कोसों दूर ले जाती है
और छोड़ देती है
एक ऐसी ऊँचाई पर
जहां से हर आदमी बौना नज़र आता है
सुख-दुःख ख़ुशी-गम के आवरण
झीने जान पड़ते हैं
मन को टटोलती हूँ
श्वसन को बटोरती हूँ
और फिर सोचती हूँ
जीवन एक रहस्य है-
इसे राज ही रहने दें.
जैसे सब बहते हैं
वैसे ही बहने दें.
Doshi kaun
दोषी कौन?
वृक्ष पर लटका पत्ता
पीला हुआ, झरा
और धरती पर गिरा
हवा के झोंको के साथ
इधर उधर उड़ा
और कही दूर जा पडा
विदम्भ्ना कहो, या कहो स्वभाव
दोष किसे दें ?
वृक्ष को!
जो पत्तों को बांध कर
रख नहीं पाया
हवा को!
जिसने पत्तों को
इधर-उधर उड़ाया
यां फिर पत्ते को!
जो जीवन भर
साथ दे ना पाया
जीवन में बहुत सारे सवाल हैं
जवाब कहीं नहीं है
बस कहीं एक समझौता है
कहीं कहीं ख़ुशी से
और
कहीं मन में मलाल है
वृक्ष पर लटका पत्ता
पीला हुआ, झरा
और धरती पर गिरा
हवा के झोंको के साथ
इधर उधर उड़ा
और कही दूर जा पडा
विदम्भ्ना कहो, या कहो स्वभाव
दोष किसे दें ?
वृक्ष को!
जो पत्तों को बांध कर
रख नहीं पाया
हवा को!
जिसने पत्तों को
इधर-उधर उड़ाया
यां फिर पत्ते को!
जो जीवन भर
साथ दे ना पाया
जीवन में बहुत सारे सवाल हैं
जवाब कहीं नहीं है
बस कहीं एक समझौता है
कहीं कहीं ख़ुशी से
और
कहीं मन में मलाल है
Bargad Ka ped
बरगद का पेड़
गाँव के बाहर बरगद का पेड़
सर्दी गर्मी ,धूप और छाया
सदियों से वह सहता आया
बदलते हर मौसम की थपेड
हरा भरा वह वृक्ष सघन
गोद में जिसके बीता बचपन
संग में जिसके हुआ बड़ा
वह आज भी वहीं अडिग खड़ा
पल- पल करके बरसो बीते
घूमा जग भर रीते-रीते
प्रतिकूल स्तिथि से जब भी घबराया
बूढ़े बरगद ने साहस बंधाया
गिर कर चड़ना और चढ़ कर गिरना
जीवन की है एक एक कला
अंतिम चरण मंजिल पर धरना
जीवन सार है यही भला
गाँव के बाहर बरगद का पेड़
सर्दी गर्मी ,धूप और छाया
सदियों से वह सहता आया
बदलते हर मौसम की थपेड
हरा भरा वह वृक्ष सघन
गोद में जिसके बीता बचपन
संग में जिसके हुआ बड़ा
वह आज भी वहीं अडिग खड़ा
पल- पल करके बरसो बीते
घूमा जग भर रीते-रीते
प्रतिकूल स्तिथि से जब भी घबराया
बूढ़े बरगद ने साहस बंधाया
गिर कर चड़ना और चढ़ कर गिरना
जीवन की है एक एक कला
अंतिम चरण मंजिल पर धरना
जीवन सार है यही भला
yaachna
याचना
सौगंध तुम्हे सच कहना मुझसे
बात एक भी ना मन में रखना
जीवन की ढलती बेला में
कब तक पड़ेगा यूं सहना
मेरी अनसोयी रातों ने
तुमको भी तो जगाया होगा
मेरे दिल की आहों ने
तुम को भी तो तड़पाया होगा
अंतस में उमड़े दुःख के बादल
तुम को भी नम करते होंगे
नयनों से छलके पानी की गागर
कोरों को गीला करते होंगे
शून्य व्योम में भटक रहा हूँ
ना रह कर मौन निहारो मुझको
अनहत स्वर का भेद ना जानू
कुछ तो कहो, पुकारो मुझको
सौगंध तुम्हे सच कहना मुझसे
बात एक भी ना मन में रखना
जीवन की ढलती बेला में
कब तक पड़ेगा यूं सहना
मेरी अनसोयी रातों ने
तुमको भी तो जगाया होगा
मेरे दिल की आहों ने
तुम को भी तो तड़पाया होगा
अंतस में उमड़े दुःख के बादल
तुम को भी नम करते होंगे
नयनों से छलके पानी की गागर
कोरों को गीला करते होंगे
शून्य व्योम में भटक रहा हूँ
ना रह कर मौन निहारो मुझको
अनहत स्वर का भेद ना जानू
कुछ तो कहो, पुकारो मुझको
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
anubhav sparsh ka
अनुभव स्पर्श का
कोलाहल चंहु और
निस्तब्ध बना पुर जोर
मधुर शब्द मौन ना
सिहरन भरा स्पर्श्य
मंजुल मन अवश्य
व्यक्त हई कल्पना
जागे सोया अभिलाष
अभिनंदित उल्लास
कुहुक उठी वेदना
कोलाहल चंहु और
निस्तब्ध बना पुर जोर
मधुर शब्द मौन ना
सिहरन भरा स्पर्श्य
मंजुल मन अवश्य
व्यक्त हई कल्पना
जागे सोया अभिलाष
अभिनंदित उल्लास
कुहुक उठी वेदना
मंगलवार, 30 नवंबर 2010
Sagar ka tat
सागर का तट और लहरें
शांत जलधि की चंचल लहरें
तट पर आती बारम्बार
उजड़े रूखे,सूखे तट को
नम कर जाती हैं हर बार
भर लेने को अपने आँचल में
करती हैं प्रयास निरंतर
लेकिन देख तट की तटस्थता
सिमट कर छुप जाती हर बार
निर्विकार तट देख उठे जब
सागर अंतस में भूचाल
नन्ही प्यारी चंचल लहरें
धरें सुनामी रूप विकराल
मर्यादा के तोड़े बंधन
भर ले आगोश में तट विशाल
उच्श्रीन्ख्ल लहरों को जबरन
रोक ना पाए सागर मराल
शांत जलधि की चंचल लहरें
तट पर आती बारम्बार
उजड़े रूखे,सूखे तट को
नम कर जाती हैं हर बार
भर लेने को अपने आँचल में
करती हैं प्रयास निरंतर
लेकिन देख तट की तटस्थता
सिमट कर छुप जाती हर बार
निर्विकार तट देख उठे जब
सागर अंतस में भूचाल
नन्ही प्यारी चंचल लहरें
धरें सुनामी रूप विकराल
मर्यादा के तोड़े बंधन
भर ले आगोश में तट विशाल
उच्श्रीन्ख्ल लहरों को जबरन
रोक ना पाए सागर मराल
सोमवार, 22 नवंबर 2010
maafi aur dost
माफ़ी और दोस्त
मेरे हर गुनाह को वह देता है माफ़ी
नहीं होने देता कभी नाइंसाफी
आंसू ना बहने पाए मेरी आँखों से
इसके लिए उसकी ही आँखे हैं काफ़ी
ओढ़ के चादर वह मेरे गुनाहों की
सजा वह मेरे हिस्से की भुगतता है
चुन चुन के कंकर वह मेरी राहों के
सुगमता की कलियाँ हर पल बिछाता है
वह कोई नहीं बस है दोस्त मेरा
दमकते सूर्य से जैसे रौशन सवेरा
वह तन्हा सफ़र में हमसाया मेरा
अनाथो की बस्ती में जैसे बसेरा
मेरे हर गुनाह को वह देता है माफ़ी
नहीं होने देता कभी नाइंसाफी
आंसू ना बहने पाए मेरी आँखों से
इसके लिए उसकी ही आँखे हैं काफ़ी
ओढ़ के चादर वह मेरे गुनाहों की
सजा वह मेरे हिस्से की भुगतता है
चुन चुन के कंकर वह मेरी राहों के
सुगमता की कलियाँ हर पल बिछाता है
वह कोई नहीं बस है दोस्त मेरा
दमकते सूर्य से जैसे रौशन सवेरा
वह तन्हा सफ़र में हमसाया मेरा
अनाथो की बस्ती में जैसे बसेरा
samjh, nasamjh
समझ - नासमझ
कभी कभी समझ भी इतनी नासमझ हो जाती है कि
समझ कर भी असमंजस मे ही रहती है
और कभी कभी नासमझ इतनी समझदार हो जाती है कि
नासमझ कर भी समन्वित ही रहती है
एक झिर्री का फांसला है इन दोनों के दरम्यान
पता ही नहीं चलता कि
समझ कब नासमझ और नासमझ कब समझदार हो जाती है
कभी कभी समझ भी इतनी नासमझ हो जाती है कि
समझ कर भी असमंजस मे ही रहती है
और कभी कभी नासमझ इतनी समझदार हो जाती है कि
नासमझ कर भी समन्वित ही रहती है
एक झिर्री का फांसला है इन दोनों के दरम्यान
पता ही नहीं चलता कि
समझ कब नासमझ और नासमझ कब समझदार हो जाती है
रविवार, 21 नवंबर 2010
Swarth ka astitv
स्वार्थ का अस्तित्व
कल्पना के आकाश से
देखा जब धरातल यथार्थ का
फटा था आँचल भोली ममता का
बस फैला था दामन स्वार्थ का
देखा मानव को चोट पहुंचाते
सब से ऊपर
देखा जीवन को रोते अकुलाते
भीतर ही भीतर
देखा अपनों को रूप बदलते
हर इक पल में
देखा बेगाने कैसे बनते अपने
केवल इक छल से
देखा सोच को होते संकुचित
जीवन दौड़ में
देखा प्यार को रोते सिसकते
हर इक मोड़ पे
क्या यही है यथार्थ
कि कामनाओं की क्षुधा
शांत करता हुआ हर व्यक्ति
चन्दन में लिपटे भुजंग जैसा
मन में लिए बैठा है स्वार्थ.
कल्पना के आकाश से
देखा जब धरातल यथार्थ का
फटा था आँचल भोली ममता का
बस फैला था दामन स्वार्थ का
देखा मानव को चोट पहुंचाते
सब से ऊपर
देखा जीवन को रोते अकुलाते
भीतर ही भीतर
देखा अपनों को रूप बदलते
हर इक पल में
देखा बेगाने कैसे बनते अपने
केवल इक छल से
देखा सोच को होते संकुचित
जीवन दौड़ में
देखा प्यार को रोते सिसकते
हर इक मोड़ पे
क्या यही है यथार्थ
कि कामनाओं की क्षुधा
शांत करता हुआ हर व्यक्ति
चन्दन में लिपटे भुजंग जैसा
मन में लिए बैठा है स्वार्थ.
शनिवार, 20 नवंबर 2010
mujh ko bhool jana
मुझ को भूल जाना
कुछ पाना और फिर कुछ पा कर खो जाना
न समझेगा समझ कर भी यह दर्द वह दीवाना
कहना मुस्कुरा कर यूं कि 'मुझ को भूल जाना'
बन जाये न सबब तन्हाई में मेरा आंसू बहाना
हो ना पायेगा अब मुझसे इस कदर वह कह्कहाना
हँसना वह हर बात पर और बेवजह ठहाके लगाना
जब कभी भी आयोगे सामने तुम याद बन कर
उठेगी टीस दिल में ,ढह उठेगा दिल का आशिआना
कुछ पाना और फिर कुछ पा कर खो जाना
न समझेगा समझ कर भी यह दर्द वह दीवाना
कहना मुस्कुरा कर यूं कि 'मुझ को भूल जाना'
बन जाये न सबब तन्हाई में मेरा आंसू बहाना
हो ना पायेगा अब मुझसे इस कदर वह कह्कहाना
हँसना वह हर बात पर और बेवजह ठहाके लगाना
जब कभी भी आयोगे सामने तुम याद बन कर
उठेगी टीस दिल में ,ढह उठेगा दिल का आशिआना
badlaav jeevan ka
बदलाव जीवन का !!!
कितनी सरलता से कह दिया हम ने हवायों को
भूले से भी न गुजरे कभी अब वह मेरे आँगन से
यूं कर दिया आगाह हमने इन नभ फिजाओं को
न इठलायें कभी अब वह मेरे मन के उपवन में
बदलते मौसमों का स्पर्श जबरन छू ही जाता है
चाहे रहो संभल कर दूर जीवन की बदलन से
कितनी सरलता से कह दिया हम ने हवायों को
भूले से भी न गुजरे कभी अब वह मेरे आँगन से
यूं कर दिया आगाह हमने इन नभ फिजाओं को
न इठलायें कभी अब वह मेरे मन के उपवन में
बदलते मौसमों का स्पर्श जबरन छू ही जाता है
चाहे रहो संभल कर दूर जीवन की बदलन से
chalo bane anjaan
चलो बने अनजान
रिश्तें बेतकुल्लफ के जिए यूं बहुत देर हम ने
चलो बार फिर से एक हम अनजान हो जाएँ
गुजारें है मधुर वो पल जो साथ साथ हमने
चलो बार फिर से एक वह बस अरमान बन जाएँ
बहा हर आँख से कतरा- ए - शबनम का मेरे ए दोस्त
हम दोनों के एक ख्वाब की पहचान बन जाये
हो जब कभी भी सामना गुजरते यूं दरीचों में
तुम्हारा अक्स मेरे दर्द- ए- जिगर का मेहमान बन जाये
रिश्तें बेतकुल्लफ के जिए यूं बहुत देर हम ने
चलो बार फिर से एक हम अनजान हो जाएँ
गुजारें है मधुर वो पल जो साथ साथ हमने
चलो बार फिर से एक वह बस अरमान बन जाएँ
बहा हर आँख से कतरा- ए - शबनम का मेरे ए दोस्त
हम दोनों के एक ख्वाब की पहचान बन जाये
हो जब कभी भी सामना गुजरते यूं दरीचों में
तुम्हारा अक्स मेरे दर्द- ए- जिगर का मेहमान बन जाये
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
stree se
स्त्री से
क्यों बन कर लता
ढूँढती हो
किसी वृक्ष का सहारा
हो स्वयं तरुवर
जुड़ना जिस से चाहे
यह उपवन सारा
क्यों बन लहर
चाहती हो हर पल एक किनारा
हो बल्ग्य इतनी
बहो बीच सागर
बन नील धारा
ना मांगो किरण
तड़प कर यूं
सूर्य से तुम
असमर्थ है वह खुद भी
झेलने को तेजस तुम्हारा
क्यों बन कर लता
ढूँढती हो
किसी वृक्ष का सहारा
हो स्वयं तरुवर
जुड़ना जिस से चाहे
यह उपवन सारा
क्यों बन लहर
चाहती हो हर पल एक किनारा
हो बल्ग्य इतनी
बहो बीच सागर
बन नील धारा
ना मांगो किरण
तड़प कर यूं
सूर्य से तुम
असमर्थ है वह खुद भी
झेलने को तेजस तुम्हारा
Satta ka upbhog
सत्ता का उपभोग
मौन शब्द
हुए स्तब्ध
देख सत्ता
का प्रारब्ध
धन लोलुपता
काम भ्रष्टता
शर्मसार हुई
कर्म महत्ता
शक्ति सुयोग
हुआ दुरप्रयोग
वाह रे रक्षक
कैसा नियोग?
मौन शब्द
हुए स्तब्ध
देख सत्ता
का प्रारब्ध
धन लोलुपता
काम भ्रष्टता
शर्मसार हुई
कर्म महत्ता
शक्ति सुयोग
हुआ दुरप्रयोग
वाह रे रक्षक
कैसा नियोग?
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
tumhaari aawaaz
तुम्हारी आवाज़
जैसे दूर पहाड़ी के पीछे
बजती वंशी की मीठी धुन
याँ फिर कमलन दल पर डोलते
मंडराते भ्रमरों की गुन-गुन
जैसे साग़र के सीने से उठे
तरंगों का कोई शोर
याँ फिर नभ में घिरी घटा को
देख कर बोल कोई मोर
जैसे झरनों की झर-झर से
निकला हुआ कोई संगीत
याँ फिर सनन सनन हवाओं का
बजता हुआ कोई गीत
जिसको सुन कर किसी का भी
दिल हो जाये बेकाबू
ऐसा है तुम्हारी
सुरमई आवाज़ का जादू
जैसे दूर पहाड़ी के पीछे
बजती वंशी की मीठी धुन
याँ फिर कमलन दल पर डोलते
मंडराते भ्रमरों की गुन-गुन
जैसे साग़र के सीने से उठे
तरंगों का कोई शोर
याँ फिर नभ में घिरी घटा को
देख कर बोल कोई मोर
जैसे झरनों की झर-झर से
निकला हुआ कोई संगीत
याँ फिर सनन सनन हवाओं का
बजता हुआ कोई गीत
जिसको सुन कर किसी का भी
दिल हो जाये बेकाबू
ऐसा है तुम्हारी
सुरमई आवाज़ का जादू
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
intzaar
इंतज़ार
सपना सजाया मैंने जाने कितनी बार
निष्ठुर जोगी तुम ना आए एक बार
राहों में जूही के सुमन बिछाए
दिनकर की किरणों से रौशन कराये
पलकों से पंथ बुहारा कई बार
रात की मांग मैंने चंदा से सजाई
झिलमिल तारों की चूनर ओढाई
घुंघटा ना खोला ना निहारा एक बार
निश्छल प्रेम की मैंने भसम रमाई
क्यों नहीं तुमने मेरी सुधि पायी
जनम जनम तेरा करूं इंतज़ार
सपना सजाया मैंने जाने कितनी बार
निष्ठुर जोगी तुम ना आए एक बार
राहों में जूही के सुमन बिछाए
दिनकर की किरणों से रौशन कराये
पलकों से पंथ बुहारा कई बार
रात की मांग मैंने चंदा से सजाई
झिलमिल तारों की चूनर ओढाई
घुंघटा ना खोला ना निहारा एक बार
निश्छल प्रेम की मैंने भसम रमाई
क्यों नहीं तुमने मेरी सुधि पायी
जनम जनम तेरा करूं इंतज़ार
सोमवार, 1 नवंबर 2010
bikhre moti chunega kaun?
बिखरे मोती चुनेगा कौन?
बंद पलक जो बुने थे सपने
खुली पलक वह हुए ना अपने
अपनों से अब मिलेगा कौन
टूटे सपने बुनेगा कौन?
कह लेते थे दिल की बातें
आँखों से जब होती बरसातें
अब दिल की बातें सुनेगा कौन?
अश्रु आँखों के पौंछेगा कौन?
जैसे सागर तट पर मोती बिखर गये
वैसे हम तुम दोनों बिछड़ गए
अब बिछड़ों से मिलेगा कौन?
बिखरे मोती चुने गा कौन?
बंद पलक जो बुने थे सपने
खुली पलक वह हुए ना अपने
अपनों से अब मिलेगा कौन
टूटे सपने बुनेगा कौन?
कह लेते थे दिल की बातें
आँखों से जब होती बरसातें
अब दिल की बातें सुनेगा कौन?
अश्रु आँखों के पौंछेगा कौन?
जैसे सागर तट पर मोती बिखर गये
वैसे हम तुम दोनों बिछड़ गए
अब बिछड़ों से मिलेगा कौन?
बिखरे मोती चुने गा कौन?
रविवार, 31 अक्तूबर 2010
ek deep mera jalne do
एक दीप मेरा जलने दो
शैशव की भोली रातों में
जाने कितने ख्वाब बुने थे
इन ख़्वाबों को अब सजने दो
एक दीप मेरा जलने दो
हुआ भ्रमित यूं पथ से भटका
श्वास श्वास में अंकुश अटका
मंजिल पर अब पग धरने दो
एक दीप मेरा जलने दो
हूँ साथ-साथ पर साथ की चाहत
युग-युग के इस एकाकी पन को
चाहत का स्पर्श मात्र करने दो
एक दीप मेरा जलने दो
शैशव की भोली रातों में
जाने कितने ख्वाब बुने थे
इन ख़्वाबों को अब सजने दो
एक दीप मेरा जलने दो
हुआ भ्रमित यूं पथ से भटका
श्वास श्वास में अंकुश अटका
मंजिल पर अब पग धरने दो
एक दीप मेरा जलने दो
हूँ साथ-साथ पर साथ की चाहत
युग-युग के इस एकाकी पन को
चाहत का स्पर्श मात्र करने दो
एक दीप मेरा जलने दो
बुधवार, 27 अक्तूबर 2010
fainsla
फैंसला
फैंसला जब से किया तुमको भूल जाने का
और भी ज्यादा हमे तुम याद आने लगे
सोच जब हम ने लिया तुम से दूर जाने का
और भी ज्यादा तुम नजदीक तर आने लगे
हम तो ख्वाब में भी ना ख्वाब यह देखा किये
और तुम तस्वीर - ऐ -हकीकत बन सामने आने लगे
पलट कर जब देखते है तो हैरान होते हैं बहुत
किस तरह तुम चार सु हरदम नज़र आने लगे
फैंसला जब से किया तुमको भूल जाने का
और भी ज्यादा हमे तुम याद आने लगे
सोच जब हम ने लिया तुम से दूर जाने का
और भी ज्यादा तुम नजदीक तर आने लगे
हम तो ख्वाब में भी ना ख्वाब यह देखा किये
और तुम तस्वीर - ऐ -हकीकत बन सामने आने लगे
पलट कर जब देखते है तो हैरान होते हैं बहुत
किस तरह तुम चार सु हरदम नज़र आने लगे
Aasavari
आसावरी
गुनगुनाओ राग अब आसावरी
प्रात बेला में न लसत बिहाग री
मूँद कर निज नयन तारे सो गए
ख़तम है अब गहन तिमिर विभावरी
त्रिविद मंद समीर पूरब से बहे
उदित प्राची से कनक रस गागरी
चहचहाते कीर कोकिल मोर पिक
चढ़ अटरिया बोलते खग कागरी
तरनी तालों में कमल दल खिल उठे
कह रहे कली से भ्रमर दल जाग री
भाल बिंदिया नयन में कजरा रचाओ
लाल सिंदूर से सजाओ मांग री
पेट पर रख पैर सोये ना कोई
युग युगों के बाद जागे भाग री
प्यार की सरिता बही उर शैल से
बुझा रही है विषमता की आग री
गुनगुनाओ राग अब आसावरी
प्रात बेला में न लसत बिहाग री
मूँद कर निज नयन तारे सो गए
ख़तम है अब गहन तिमिर विभावरी
त्रिविद मंद समीर पूरब से बहे
उदित प्राची से कनक रस गागरी
चहचहाते कीर कोकिल मोर पिक
चढ़ अटरिया बोलते खग कागरी
तरनी तालों में कमल दल खिल उठे
कह रहे कली से भ्रमर दल जाग री
भाल बिंदिया नयन में कजरा रचाओ
लाल सिंदूर से सजाओ मांग री
पेट पर रख पैर सोये ना कोई
युग युगों के बाद जागे भाग री
प्यार की सरिता बही उर शैल से
बुझा रही है विषमता की आग री
शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010
Shiv - Ganga
शिव-गंगा
अखबार में छपी खबर
हरिद्वार में गंगा बीच धार
खड़ी थी जो शिव की मूर्ति विशाल
वह ना झेल पायी गंगा का बहाव
और बह गयी कोटि मील पार
सत्य है कलियुग में -
गंगा का आवेग
शिव भी रोक नहीं पाते हैं
जाह्नवी को बांधने में
स्वयं को असमर्थ पातें है
शिव एक शक्ति है
ध्योतक है सत्य का
और सुन्दरता की आसक्ति है
जब सत्यम, शिवम् सुंदरम का
ना हो अनुपातित मिश्रण
तब शिव स्वरुप परिकल्पना का
हो जाता स्वत हनन
और दूसरी ओर यूं कहें-
गंगा परिचायक है
शक्ति स्वरुप का
करती संरचनाएं
कोटि जन मानस का
उच्च्श्रीन्ख्लता धारा की जब
सीमा लांघ जाती है
कोई भी मर्यादा उसे
बाँध नहीं पाती है
शिव और शक्ति ही
इस जग के हैं पराभास
संचालित समस्त , सौर- मंडल
कराये जीवन का एहसास
अखबार में छपी खबर
हरिद्वार में गंगा बीच धार
खड़ी थी जो शिव की मूर्ति विशाल
वह ना झेल पायी गंगा का बहाव
और बह गयी कोटि मील पार
सत्य है कलियुग में -
गंगा का आवेग
शिव भी रोक नहीं पाते हैं
जाह्नवी को बांधने में
स्वयं को असमर्थ पातें है
शिव एक शक्ति है
ध्योतक है सत्य का
और सुन्दरता की आसक्ति है
जब सत्यम, शिवम् सुंदरम का
ना हो अनुपातित मिश्रण
तब शिव स्वरुप परिकल्पना का
हो जाता स्वत हनन
और दूसरी ओर यूं कहें-
गंगा परिचायक है
शक्ति स्वरुप का
करती संरचनाएं
कोटि जन मानस का
उच्च्श्रीन्ख्लता धारा की जब
सीमा लांघ जाती है
कोई भी मर्यादा उसे
बाँध नहीं पाती है
शिव और शक्ति ही
इस जग के हैं पराभास
संचालित समस्त , सौर- मंडल
कराये जीवन का एहसास
lahren
लहरें
उध्वेलित हो कर उठती लहरें
तट से टकरा जाती हर बार
तुम साथ चलो करती अनुरोध
पर तट का करते देख विरोध
सोच रहीं विषय एक बार
क्यों आती हैं हम इस तट के पास
रोक ना पाया कभी यह हम को
ना कभी यह चला हमारे साथ
उध्वेलित हो कर उठती लहरें
तट से टकरा जाती हर बार
तुम साथ चलो करती अनुरोध
पर तट का करते देख विरोध
सोच रहीं विषय एक बार
क्यों आती हैं हम इस तट के पास
रोक ना पाया कभी यह हम को
ना कभी यह चला हमारे साथ
ek kathin pareeksha aur sahi
एक कठिन परीक्षा और सही
गम की काली रात भयावनी
क्रंदन करती पूर्णकाल
अश्रुपूरित नयनावलियों के
अंजन धोती बारम्बार
तेवर बदले जगवालों ने
किन्तु ना बदली मस्तक धार
जब तुम ने ही लिख डाला मस्तक
अपने स्वर्णिम हाथों से
श्रम कुठार ले कर चल दूंगा
ना लूँगा दीक्षा और कहीं
एक कठिन परीक्षा और सही
है मुझे भरोसा निज स्वेद का
व्यर्थ ना यूं गिरने दूंगा
हर एक बूँद पर स्वर्ण उगेगा
सत्य भागीरथ व्रत लूँगा
तुम जो कर सकते हो वह कर लो
है मुझ को स्वीकार चुनौती
अपने अस्त्र ,शस्त्र और बल की
तुम करो समीक्षा और सही
एक कठिन परीक्षा और सही
गम की काली रात भयावनी
क्रंदन करती पूर्णकाल
अश्रुपूरित नयनावलियों के
अंजन धोती बारम्बार
तेवर बदले जगवालों ने
किन्तु ना बदली मस्तक धार
जब तुम ने ही लिख डाला मस्तक
अपने स्वर्णिम हाथों से
श्रम कुठार ले कर चल दूंगा
ना लूँगा दीक्षा और कहीं
एक कठिन परीक्षा और सही
है मुझे भरोसा निज स्वेद का
व्यर्थ ना यूं गिरने दूंगा
हर एक बूँद पर स्वर्ण उगेगा
सत्य भागीरथ व्रत लूँगा
तुम जो कर सकते हो वह कर लो
है मुझ को स्वीकार चुनौती
अपने अस्त्र ,शस्त्र और बल की
तुम करो समीक्षा और सही
एक कठिन परीक्षा और सही
गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010
Kahin to koyee taakat hai
कहीं तो कोई ताकत है
जो हमसे काम करवाती है
मुस्कुराते हुए विषमता में जीना सिखलाती है
तेज़ हवाओं के थपेड़ों को सह कर भी
एक नन्हे से दिए की तरह टिमटिमाती है
करती है सामना एक शक्तिशाली तूफ़ान का
होंसले की बुलन्दियो को छू कर आती है
थकती है रूकती है लेकिन दूर देख मंजिल
फिर रुके कदम उठा कर आगे बढती है
आखिर कही तो कोई ताकत है................
जो हमसे काम करवाती है
मुस्कुराते हुए विषमता में जीना सिखलाती है
तेज़ हवाओं के थपेड़ों को सह कर भी
एक नन्हे से दिए की तरह टिमटिमाती है
करती है सामना एक शक्तिशाली तूफ़ान का
होंसले की बुलन्दियो को छू कर आती है
थकती है रूकती है लेकिन दूर देख मंजिल
फिर रुके कदम उठा कर आगे बढती है
आखिर कही तो कोई ताकत है................
kahaan ho tum
कहाँ हो तुम
जहां कहीं भी नज़र दौड़ाओगे
हँसता खिलखिलाता मुझे पायोगे
इन हवाओं में शोख फिजाओं में
अम्बर के सितारों में
धरती के नजारों में
दरिया की रवानी में
बादल की कहानी में
तुमने मुझे कभी बुलाया ही नहीं
अपना कभी बनाया ही नहीं
क्या कहते हो "मैं कहाँ हूँ"?
जहां कोई ना पहुँच पाया
मैं तो हमेशा वहां हूँ
जहां कहीं भी नज़र दौड़ाओगे
हँसता खिलखिलाता मुझे पायोगे
इन हवाओं में शोख फिजाओं में
अम्बर के सितारों में
धरती के नजारों में
दरिया की रवानी में
बादल की कहानी में
तुमने मुझे कभी बुलाया ही नहीं
अपना कभी बनाया ही नहीं
क्या कहते हो "मैं कहाँ हूँ"?
जहां कोई ना पहुँच पाया
मैं तो हमेशा वहां हूँ
बुधवार, 20 अक्तूबर 2010
sahna padta hai dard yahaan sab ko apne hisse ka
सहना पड़ता है दर्द यहाँ सब को अपने हिस्से का
डूबा करता हूँ जब भी पीड़ा के बहते दरिया में
बह जाती है सारी आशा विकल वेदना के प्रांगन में
उच्चरित होती है सदा सर्वदा अपनी पीड़ा की कोरी कथा
कोस कोस नियति को मानव शांत करता है अपनी व्यथा
जीवन है सुख दुःख का संगम ऐसा सब ने बतलाया था
फिर भी ना जाने क्यों इस तथ्य को आत्म-साध ना कर पाया था
क्यों बेचैन हुआ फिरता है प्राणी जीवन में झरते दुखों से
सहना पड़ता है दर्द यहाँ सबको अपने अपने हिस्से का
डूबा करता हूँ जब भी पीड़ा के बहते दरिया में
बह जाती है सारी आशा विकल वेदना के प्रांगन में
उच्चरित होती है सदा सर्वदा अपनी पीड़ा की कोरी कथा
कोस कोस नियति को मानव शांत करता है अपनी व्यथा
जीवन है सुख दुःख का संगम ऐसा सब ने बतलाया था
फिर भी ना जाने क्यों इस तथ्य को आत्म-साध ना कर पाया था
क्यों बेचैन हुआ फिरता है प्राणी जीवन में झरते दुखों से
सहना पड़ता है दर्द यहाँ सबको अपने अपने हिस्से का
सोमवार, 18 अक्तूबर 2010
Maut aur jeevan
मौत और जीवन
भर लेती मौत मुझे आज अपने अंक में
याँ यूं कहो कि, बस छू कर मुझे चली गई
सोचूँ ,पथ से भटक गई थी क्या ?
याँ फिर अपनी मंजिल से बिछड़ गई
जितना आसान लगता है उन्हें मरना यहाँ
शायद उससे भी मुश्किल है यूं मौत के साए से गुजरना
भयावह चीखों और चीत्कारों के समक्ष
संघर्ष जीवन का लगा बड़ा ही सहज , सुहावना
संघर्षों में छुपा हुआ है जीवन का संविधान
अमृत समझ कर करता हूँ मैं इस विष का पान
मन्त्र मौत का तज दो इस में ही है तेरी शान
संघर्ष थमा तो होगा मृत जीते हुए भी यह इंसान
भर लेती मौत मुझे आज अपने अंक में
याँ यूं कहो कि, बस छू कर मुझे चली गई
सोचूँ ,पथ से भटक गई थी क्या ?
याँ फिर अपनी मंजिल से बिछड़ गई
जितना आसान लगता है उन्हें मरना यहाँ
शायद उससे भी मुश्किल है यूं मौत के साए से गुजरना
भयावह चीखों और चीत्कारों के समक्ष
संघर्ष जीवन का लगा बड़ा ही सहज , सुहावना
संघर्षों में छुपा हुआ है जीवन का संविधान
अमृत समझ कर करता हूँ मैं इस विष का पान
मन्त्र मौत का तज दो इस में ही है तेरी शान
संघर्ष थमा तो होगा मृत जीते हुए भी यह इंसान
शनिवार, 16 अक्तूबर 2010
kavita
कविता
खट्टे मीठे अनुभव ख्यालों में संजोती हूँ
मोती ख्यालो के शब्दों में पिरोती हूँ
कविता की माला स्वतः बन जाती है
गले में पहन लो तो हृदय छू जाती है
रस-छंद ज्ञान से बिलकुल अनभिग्य हूँ
फिर भी शब्दों की तान सुनाती सर्वग्य हूँ
हर पल हर क्षण जो हो जाए रूहानी है
बस इतनी सी कविता कहने की कहानी है
खट्टे मीठे अनुभव ख्यालों में संजोती हूँ
मोती ख्यालो के शब्दों में पिरोती हूँ
कविता की माला स्वतः बन जाती है
गले में पहन लो तो हृदय छू जाती है
रस-छंद ज्ञान से बिलकुल अनभिग्य हूँ
फिर भी शब्दों की तान सुनाती सर्वग्य हूँ
हर पल हर क्षण जो हो जाए रूहानी है
बस इतनी सी कविता कहने की कहानी है
pathhar
पत्थर
मैं एक पत्थर जो था हिस्सा किसी ऊँचे पर्वत का
सिर उठाये खड़ा था सब से ऊपर शान से
वक्त की आंधी से गिरा जो जमीन पर
अस्तित्व के लिए ढूँढता हूँ धरातल अभी
घमंड कहो या कहो स्वाभिमान
ख़ाक होने के बाद भी जिन्दा हूँ अभी
मैं एक पत्थर जो था हिस्सा किसी ऊँचे पर्वत का
सिर उठाये खड़ा था सब से ऊपर शान से
वक्त की आंधी से गिरा जो जमीन पर
अस्तित्व के लिए ढूँढता हूँ धरातल अभी
घमंड कहो या कहो स्वाभिमान
ख़ाक होने के बाद भी जिन्दा हूँ अभी
Tum se acchi tumhaari yaad
तुम से अच्छी तुम्हारी याद
जब भी आती याद तुम्हारी
गहरा जाती अधरों पर मुस्कान
शीतल करती मनस तपन को
मिट जाती सारी थकान
शाम ढले सूरज की लाली
लगती उषा की अरुणिम भोर
रजनी के तम की चादर काली
याद की टिम-टिम में ढूंढे छोर
तुमसे अच्छी याद तुम्हारी
ना लड़े ना रूठे ना बिगड़े कभी
तेज हवा में खुशबू जैसी
हर लम्हे को जिन्दा रखती रही
जब भी आती याद तुम्हारी
गहरा जाती अधरों पर मुस्कान
शीतल करती मनस तपन को
मिट जाती सारी थकान
शाम ढले सूरज की लाली
लगती उषा की अरुणिम भोर
रजनी के तम की चादर काली
याद की टिम-टिम में ढूंढे छोर
तुमसे अच्छी याद तुम्हारी
ना लड़े ना रूठे ना बिगड़े कभी
तेज हवा में खुशबू जैसी
हर लम्हे को जिन्दा रखती रही
मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010
basti ke log
बस्ती के लोग
क्या जाने बस्ती के लोग
कैसे शमा जली रात भर
दर्द बहे जैसे पिघले मोम
पिघल पिघल कर जली वर्तिका
जखम सरीखा जम गया मोम
रिसता रहा ज़ख्म रात भर
कैसे सहे दर्द-ए- वियोग
क्या जाने बस्ती के लोग
क्या जाने बस्ती के लोग
कैसे शमा जली रात भर
दर्द बहे जैसे पिघले मोम
पिघल पिघल कर जली वर्तिका
जखम सरीखा जम गया मोम
रिसता रहा ज़ख्म रात भर
कैसे सहे दर्द-ए- वियोग
क्या जाने बस्ती के लोग
diwaanaa kh kar
दीवाना कह कर यूं लोग
दीवाना कह कर मुझे यूं लोग बुलाने लगें हैं.
नाम मेरा तेरे नाम के साथ सजाने लगें हैं
डूबा देख कर मुझे यूं उल्फत में ए दोस्त
अपने गीतों में मेरे अफ़साने सुनाने लगें हैं
भूल कर भी ना गुजरूँ तेरी गली से ए दोस्त
तेरी गली के हर मोड़ पर बाँध बनाने लगे हैं
लगता है वोह भी वाकिफ हैं मेरी ढिठाई से
इसलिए अब वह मुझ से कतराने लगें हैं
दीवाना कह कर मुझे यूं लोग बुलाने लगें हैं.
नाम मेरा तेरे नाम के साथ सजाने लगें हैं
डूबा देख कर मुझे यूं उल्फत में ए दोस्त
अपने गीतों में मेरे अफ़साने सुनाने लगें हैं
भूल कर भी ना गुजरूँ तेरी गली से ए दोस्त
तेरी गली के हर मोड़ पर बाँध बनाने लगे हैं
लगता है वोह भी वाकिफ हैं मेरी ढिठाई से
इसलिए अब वह मुझ से कतराने लगें हैं
iltiza
इल्तिजा
ना देना फिर कभी यूं मेरे दरवाज़े पे तुम दस्तक
तड़प कर निकलेगी आह हम से ना संभाली जायेगी
तन्हाईओं का यह गश्त हम तो सह ही जायेंगे
तेरी रुस्वाईओ की पीड़ा ना हम से झेली जायेगी
जुस्तजू की बहुत हम ने तुम से मिलने की यूं उम्र भर
आरज़ू तुमसे मिलने की अब हम को ता उम्र तडपाये गी
ना देना फिर कभी यूं मेरे दरवाज़े पे तुम दस्तक
तड़प कर निकलेगी आह हम से ना संभाली जायेगी
तन्हाईओं का यह गश्त हम तो सह ही जायेंगे
तेरी रुस्वाईओ की पीड़ा ना हम से झेली जायेगी
जुस्तजू की बहुत हम ने तुम से मिलने की यूं उम्र भर
आरज़ू तुमसे मिलने की अब हम को ता उम्र तडपाये गी
hasraten.
हसरतें
मर कर भी ना ख़तम होगा यह इंतज़ार तेरा
हसरतें दिल की मेरे साथ दम तोड़ जायेंगी
ना खौफ है गम-ए-तन्हाई का ऐ मेरे दोस्त
तेरी याद मेरे साथ दफ़न कर दी जाएगी
सजेंगें जब भी मेले मेरी कब्र पर यूं
दुआएं नाम की तेरे हर दम पुकारी जाएँ गी
मर कर भी ना ख़तम होगा यह इंतज़ार तेरा
हसरतें दिल की मेरे साथ दम तोड़ जायेंगी
ना खौफ है गम-ए-तन्हाई का ऐ मेरे दोस्त
तेरी याद मेरे साथ दफ़न कर दी जाएगी
सजेंगें जब भी मेले मेरी कब्र पर यूं
दुआएं नाम की तेरे हर दम पुकारी जाएँ गी
tum choonki apne ho
तुम चूंकि अपने हो
तुम चूंकि अपने हो
भोर की झपकी के सुनहले से सपने हो
इसलिए कहते हैं
द्वार मन आँगन के
प्रेम की सांकल है
इसे तोड़ यूं गिराओ मत
रिश्ते यह अनजाने है
कोई नाम दे बुलाओ मत
बंधन कच्चे धागे के
इन्हें और यूं उलझाओ मत
जीवन के कोरे पन्नो पर
अंकित जो तेरे नाम हुए
इन्हें इस तरह मिटवायो मत
तुम चूंकि अपने हो
भोर की झपकी के सुनहले से सपने हो
इसलिए कहते हैं
द्वार मन आँगन के
प्रेम की सांकल है
इसे तोड़ यूं गिराओ मत
रिश्ते यह अनजाने है
कोई नाम दे बुलाओ मत
बंधन कच्चे धागे के
इन्हें और यूं उलझाओ मत
जीवन के कोरे पन्नो पर
अंकित जो तेरे नाम हुए
इन्हें इस तरह मिटवायो मत
रविवार, 10 अक्तूबर 2010
ek sansmaran
एक संस्मरण
उस दिन ऑफिस में छोटी दिवाली के दिन दिवाली पूजा का आयोजन किया जा रहा था. सारे कर्मियों का उत्साहह पूरे जोर पर था. हर कोई त्यौहार मनाने के मूड में था. काम करने में शायद ही किसी का मन लग रहा हो. वह भी त्यौहार मनाने के शौक में डूबी हुई थी.तभी उसके के अधिकारी ने उसके काम में कुछ भूल सुधार करने के सलाह देते हुए कुछ पेपर उसे वापिस कर दिए.लकिन अपने पेपर्स में कोई भी त्रुटि ना मिल पाने के कारण वह उस पेपर को लाकर पुनह अपने अधिकारी के पास गयी और बोला कि यह सब ठीक है. "सब ठीक है जाओ जा कर सी ऍम डी से हस्ताक्षर करवा लायो " ऐसा अधिकारी ने कहा!
अधिकारी से ऐसे सुनते ही उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया. सिनिअर से गुस्सा करना व्यर्थ होता है. बेबस सी हो कर अधिकारी के कक्ष से बाहर आ गयी और वे पेपर्स सी ऍम डी के सक्रेट्री को देदिए . बड़ी छोटी सी बात थी. लकिन उसके का लिए बड़ी ही असहज और असहनीय थी. अपने आप को सयंत नहीं कर पाई. दिल का गुबार आँखों से बह कर निकल जाना चाहता था लेकिन आंसू आँखों के कोरों पर आ कर थम जाते थे . दिल के भाव कोई जान ना पाए इस लिए ओंठो पर एक मुस्कान की लकीर खींचने की बराबर कोशिश हो रही थी.
इतने में दफ्तर के सब लोग पूजा के लिए नीचे प्रांगन में एकत्रित होने लगे और दिवाली पूजा आरम्भ हो गयी. अपनी भावनायों के उद्द्वेग को शांत करने की नाकाम कोशिश उसे पूजा में शामिल होने से रोकती रही. हर कोई उसे नीचे पूजा में शामिल होने के लिए बुला रहा था .
किसी तरह अपने आप को सयंत करके कुछ समय के बाद वह वह अपने प्रतिबिम्ब को दर्पण में निहार कर आश्वस्त हो कर कि अब चेहरे से कोई भी भाव नहीं पढ़ पाए गा वह पूजा में शामिल हुई . आरती शुरू हो चुकी थी. लेकिन अब भी वह मानसिक रूप से वहां शामिल नहीं हुई थी. मन तो आंतरिक उद्द्वेग को रोकने क़ी कोशिश में लगा था.अचानक कोई उसके पास आकर खड़ा हो गया और धीरे से कान में कहा जाओ आरती लो और आरती की तरफ साथ साथ कदम बढाने लगा. जिस मानसिक उद्वेग को शांत करने के लिए वह पिछले एक घंटे से नाकामयाब कोशिश कर रही थी वह एक ही पल में शांत हो गया. यह वही अधिकारी था जिसके व्यवहार ने उसे कुछ समय पहले व्यथित कर दिया था.मन उस अधिकारी के लिए श्रद्धा और प्यार से भर गया और सोचने लगी कि जब और कोई उसके चेहरे को भी ना पढ़ पाया तो यह व्यक्ति उसके मन के भाव को कैसे पढ़ सका.
सच हम सब दोहरे माप-दंड में जीते हैं . इंसान व्यक्तिगत रूप में बहुत अच्छा होता है लेकिन हम दफ्तर में कई बार अधिकारी के आवरण में लिपटे उस इंसान के करीब नहीं पहुँच पाते और उसे नहीं पहचान पाते.आज दफ्तर छोड़ने के बाद भी वह शख्स उसका एक बहुत प्यारा दोस्त और उसके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है.
उस दिन ऑफिस में छोटी दिवाली के दिन दिवाली पूजा का आयोजन किया जा रहा था. सारे कर्मियों का उत्साहह पूरे जोर पर था. हर कोई त्यौहार मनाने के मूड में था. काम करने में शायद ही किसी का मन लग रहा हो. वह भी त्यौहार मनाने के शौक में डूबी हुई थी.तभी उसके के अधिकारी ने उसके काम में कुछ भूल सुधार करने के सलाह देते हुए कुछ पेपर उसे वापिस कर दिए.लकिन अपने पेपर्स में कोई भी त्रुटि ना मिल पाने के कारण वह उस पेपर को लाकर पुनह अपने अधिकारी के पास गयी और बोला कि यह सब ठीक है. "सब ठीक है जाओ जा कर सी ऍम डी से हस्ताक्षर करवा लायो " ऐसा अधिकारी ने कहा!
अधिकारी से ऐसे सुनते ही उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया. सिनिअर से गुस्सा करना व्यर्थ होता है. बेबस सी हो कर अधिकारी के कक्ष से बाहर आ गयी और वे पेपर्स सी ऍम डी के सक्रेट्री को देदिए . बड़ी छोटी सी बात थी. लकिन उसके का लिए बड़ी ही असहज और असहनीय थी. अपने आप को सयंत नहीं कर पाई. दिल का गुबार आँखों से बह कर निकल जाना चाहता था लेकिन आंसू आँखों के कोरों पर आ कर थम जाते थे . दिल के भाव कोई जान ना पाए इस लिए ओंठो पर एक मुस्कान की लकीर खींचने की बराबर कोशिश हो रही थी.
इतने में दफ्तर के सब लोग पूजा के लिए नीचे प्रांगन में एकत्रित होने लगे और दिवाली पूजा आरम्भ हो गयी. अपनी भावनायों के उद्द्वेग को शांत करने की नाकाम कोशिश उसे पूजा में शामिल होने से रोकती रही. हर कोई उसे नीचे पूजा में शामिल होने के लिए बुला रहा था .
किसी तरह अपने आप को सयंत करके कुछ समय के बाद वह वह अपने प्रतिबिम्ब को दर्पण में निहार कर आश्वस्त हो कर कि अब चेहरे से कोई भी भाव नहीं पढ़ पाए गा वह पूजा में शामिल हुई . आरती शुरू हो चुकी थी. लेकिन अब भी वह मानसिक रूप से वहां शामिल नहीं हुई थी. मन तो आंतरिक उद्द्वेग को रोकने क़ी कोशिश में लगा था.अचानक कोई उसके पास आकर खड़ा हो गया और धीरे से कान में कहा जाओ आरती लो और आरती की तरफ साथ साथ कदम बढाने लगा. जिस मानसिक उद्वेग को शांत करने के लिए वह पिछले एक घंटे से नाकामयाब कोशिश कर रही थी वह एक ही पल में शांत हो गया. यह वही अधिकारी था जिसके व्यवहार ने उसे कुछ समय पहले व्यथित कर दिया था.मन उस अधिकारी के लिए श्रद्धा और प्यार से भर गया और सोचने लगी कि जब और कोई उसके चेहरे को भी ना पढ़ पाया तो यह व्यक्ति उसके मन के भाव को कैसे पढ़ सका.
सच हम सब दोहरे माप-दंड में जीते हैं . इंसान व्यक्तिगत रूप में बहुत अच्छा होता है लेकिन हम दफ्तर में कई बार अधिकारी के आवरण में लिपटे उस इंसान के करीब नहीं पहुँच पाते और उसे नहीं पहचान पाते.आज दफ्तर छोड़ने के बाद भी वह शख्स उसका एक बहुत प्यारा दोस्त और उसके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है.
शनिवार, 9 अक्तूबर 2010
bachpan ki yaad
बचपन की याद
२५ साल बाद वह उस शहर में किसी शादी के उत्सव में शामिल होने के लिए वापिस आई थी जहा उसके बचपन का कुछ हिस्सा बीता था .
शादी का उत्सव अपने पूरे जोर पर था. हर एक शख्स अपनी धुन में मस्त था . वह भी अपने परिवार के साथ उत्सव का आनंद उठा रही थी कि अचानक उसे महसूस हुआ कि कही दो आँखे उसे निरंतर देख रही है.
कुछ समय बीत जाने पर सहसा किसी ने उसके सिर पर जोर से हाथ लगाया और एक ही झटके से उसकी केश राशि को छिन्न-भिन्न कर दिया और बोला : "बड़ी देर से मेरा तेरे बालों को खराब करने का दिल कर रहा था " और इतना कह कर वह आगे बढ गया. यह वह शख्स थे जो उसे बराबर देख रहा था . वह भी अचानक अपनी जगह से उठी और उसके पीछे दौड़ कर उसे कालर से पकड़ लिया और उसकी कमीज की जेब से पेन निकल कर बिलकुल सफेद कमीज़ पर जल्दी से आढ़ी तिरछी लकीरें खींच दी.यह सब इतना आनन्- फानन हुआ कि किसी को भी कुछ समझने का अवसर ही नहीं मिला कि यह क्या हुआ और क्यों हुआ
लकिन वह दोनों दुनिया से बेखबर एक दूसरे को देखते और मुस्कुराते रहे.सहसा आँखों से जल धारा बह निकली. वह दोनों बचपन के दोस्त थे और आज अचानक ३५ साल बाद मिले थे . बचपन की याद आज भी दोनों के जहन में इतनी जयादा अंकित थी कि दोनों उसे याद कर के आत्म विभोर हो रहे थे.
सच बचपन बड़ा ही सहज और सुंदर होता है.भोली यादे कभी कभी इतनी मानस पटल पर ऐसे अंकित हो जाती कि हम उसे हमेशा याद नहीं रखते लकिन जब भी वोह व्यक्ति सामने आ जाता है तो उससे जुडी सारी यादें ज्वलंत हो जाती है.
२५ साल बाद वह उस शहर में किसी शादी के उत्सव में शामिल होने के लिए वापिस आई थी जहा उसके बचपन का कुछ हिस्सा बीता था .
शादी का उत्सव अपने पूरे जोर पर था. हर एक शख्स अपनी धुन में मस्त था . वह भी अपने परिवार के साथ उत्सव का आनंद उठा रही थी कि अचानक उसे महसूस हुआ कि कही दो आँखे उसे निरंतर देख रही है.
कुछ समय बीत जाने पर सहसा किसी ने उसके सिर पर जोर से हाथ लगाया और एक ही झटके से उसकी केश राशि को छिन्न-भिन्न कर दिया और बोला : "बड़ी देर से मेरा तेरे बालों को खराब करने का दिल कर रहा था " और इतना कह कर वह आगे बढ गया. यह वह शख्स थे जो उसे बराबर देख रहा था . वह भी अचानक अपनी जगह से उठी और उसके पीछे दौड़ कर उसे कालर से पकड़ लिया और उसकी कमीज की जेब से पेन निकल कर बिलकुल सफेद कमीज़ पर जल्दी से आढ़ी तिरछी लकीरें खींच दी.यह सब इतना आनन्- फानन हुआ कि किसी को भी कुछ समझने का अवसर ही नहीं मिला कि यह क्या हुआ और क्यों हुआ
लकिन वह दोनों दुनिया से बेखबर एक दूसरे को देखते और मुस्कुराते रहे.सहसा आँखों से जल धारा बह निकली. वह दोनों बचपन के दोस्त थे और आज अचानक ३५ साल बाद मिले थे . बचपन की याद आज भी दोनों के जहन में इतनी जयादा अंकित थी कि दोनों उसे याद कर के आत्म विभोर हो रहे थे.
सच बचपन बड़ा ही सहज और सुंदर होता है.भोली यादे कभी कभी इतनी मानस पटल पर ऐसे अंकित हो जाती कि हम उसे हमेशा याद नहीं रखते लकिन जब भी वोह व्यक्ति सामने आ जाता है तो उससे जुडी सारी यादें ज्वलंत हो जाती है.
Chhuan
छुअन
याद तुम्हारी छू जाती है
जब भी मेरा शोख बदन
थम जाती है लय श्वास की
रग-रग में दौड़े सिहरन
बन जातें कई इंद्र- धनुष
बिखरातें हैं रंग नवल
अनुपम रंगों से सज कर
महक उठते हैं पुष्प सजल
रौशन होते दीप हज़ारों
चकाचौंध होता त्रिभुवन
जाग्रत होती सुप्त चेतना
जब अनुभव होती तेरी छुअन
याद तुम्हारी छू जाती है
जब भी मेरा शोख बदन
थम जाती है लय श्वास की
रग-रग में दौड़े सिहरन
बन जातें कई इंद्र- धनुष
बिखरातें हैं रंग नवल
अनुपम रंगों से सज कर
महक उठते हैं पुष्प सजल
रौशन होते दीप हज़ारों
चकाचौंध होता त्रिभुवन
जाग्रत होती सुप्त चेतना
जब अनुभव होती तेरी छुअन
रविवार, 3 अक्तूबर 2010
ek anubhav
एक अनुभव
"अरे बेटा ! आज सुबह ४ बजे मैं उठ कर चौके में नहीं जा सकी. इस लिए आज सुबह मैंने आप को दूध नहीं दिया".
माँ ने अपने तेज चाकू की धार से कटे हुए हाथ को पकड़ कर दर्द से करहाते हुए बोला.
आठ साल के बेटे ने अपनी माँ का सर सहलाते हुए उत्तर दिया," कोई बात नहीं आज आप आराम करो. मुझे भूख नहीं लगी है"
माँ की आँखे भर आयी और सोचने लगी "कि कौन कहता है कि रिश्तों मैं गर्माहट नहीं है , भावना नहीं है?
अगर आज आठ साल का एक बच्चा यह बात सोच सकता है तो यही बच्चा जब जवान हो कर बहुत जिमेवारिया अपने मज़बूत कन्धों पर उठाये गा तो क्या बदल जायेगा? क्या इस कि सोच बदल जाएगी?
नहीं नहीं .....ऐसा सोच कर माँ कि रूह कांप जाती है और उस नन्हे बालक को कलेजे से लगा कर सोचने लगती है कि गलती कही हम से होती है उस नन्ही, कच्ची सोच को मज़बूत रंग देने में.
बालक तो एक कच्ची मिटी की किसी रचना के सामान है जिसे तराशने में कहीं कोई चूक हम से ही हो जाती है जाने अनजाने में ,और वह रिश्तो कि मर्यादा और भावनाओं को बस एक ही तराजू पर तोलने लगता है .
बालक ने माँ को किसी गहरी सोच में डूबे देख कर बोला ," आप को मालूम है मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाला. दीदी को तो मालूम नहीं कि वह अपने हसबंड के साथ अपने घर चली जाएगी सिर्फ मैं आप के साथ रहने वाला हूँ . और मैं किसी दूसरे घर में नहीं जाने वाला . मैं इस घर को बेचूंगा भी नहीं .
अब माँ अवाक थी और सोच रही थी कि यह सब इस को किस ने सिखलाया. शायद यही संस्कार थे जो उस नन्हे बच्चे ने माँ के गर्भ से ही ग्रहण कर लिए थे .
सिर्फ संस्कार ही एक ऐसी संपत्ति है जो पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिलती है और कुछ नहीं.
"अरे बेटा ! आज सुबह ४ बजे मैं उठ कर चौके में नहीं जा सकी. इस लिए आज सुबह मैंने आप को दूध नहीं दिया".
माँ ने अपने तेज चाकू की धार से कटे हुए हाथ को पकड़ कर दर्द से करहाते हुए बोला.
आठ साल के बेटे ने अपनी माँ का सर सहलाते हुए उत्तर दिया," कोई बात नहीं आज आप आराम करो. मुझे भूख नहीं लगी है"
माँ की आँखे भर आयी और सोचने लगी "कि कौन कहता है कि रिश्तों मैं गर्माहट नहीं है , भावना नहीं है?
अगर आज आठ साल का एक बच्चा यह बात सोच सकता है तो यही बच्चा जब जवान हो कर बहुत जिमेवारिया अपने मज़बूत कन्धों पर उठाये गा तो क्या बदल जायेगा? क्या इस कि सोच बदल जाएगी?
नहीं नहीं .....ऐसा सोच कर माँ कि रूह कांप जाती है और उस नन्हे बालक को कलेजे से लगा कर सोचने लगती है कि गलती कही हम से होती है उस नन्ही, कच्ची सोच को मज़बूत रंग देने में.
बालक तो एक कच्ची मिटी की किसी रचना के सामान है जिसे तराशने में कहीं कोई चूक हम से ही हो जाती है जाने अनजाने में ,और वह रिश्तो कि मर्यादा और भावनाओं को बस एक ही तराजू पर तोलने लगता है .
बालक ने माँ को किसी गहरी सोच में डूबे देख कर बोला ," आप को मालूम है मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाला. दीदी को तो मालूम नहीं कि वह अपने हसबंड के साथ अपने घर चली जाएगी सिर्फ मैं आप के साथ रहने वाला हूँ . और मैं किसी दूसरे घर में नहीं जाने वाला . मैं इस घर को बेचूंगा भी नहीं .
अब माँ अवाक थी और सोच रही थी कि यह सब इस को किस ने सिखलाया. शायद यही संस्कार थे जो उस नन्हे बच्चे ने माँ के गर्भ से ही ग्रहण कर लिए थे .
सिर्फ संस्कार ही एक ऐसी संपत्ति है जो पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिलती है और कुछ नहीं.
viraasat
विरासत
क्या दोगे बच्चों को विरासत में
पूछा किसी ने एक दिन
गंभीर सोच में डूबा मन था
जीवन भर जो भाग दौड़ कर
संचित किया जो इतना धन
दे जाऊंगा इन बच्चों को
निश्चिन्त बनेगा इनका जीवन
संचित धन तो चल माया है
पीढ़ी-दर-पीढ़ी ना साथ चले
सु-संस्कारों की झोली भरो
जो जीवन भर तो साथ रहे
धन क्या खुशियाँ दे पायेगा
धन क्या भूख मिटा पायेगा
धन क्या समझेगा मानवता
धन क्या धर्म सिखा पायेगा
जो जीवन सभ्य सुसंस्कृत करदे
ऐसे भरदो तुम संस्कार
अमर रहेगा नाम तुम्हारा
मानवता पर भी होगा उपकार
नन्ही बूंदे अच्छी बातों की
देते हैं जो जीवन पर्यंत
बन जाती है अथाह जल राशि
जिसका कभी ना होता अंत
क्या दोगे बच्चों को विरासत में
पूछा किसी ने एक दिन
गंभीर सोच में डूबा मन था
जीवन भर जो भाग दौड़ कर
संचित किया जो इतना धन
दे जाऊंगा इन बच्चों को
निश्चिन्त बनेगा इनका जीवन
संचित धन तो चल माया है
पीढ़ी-दर-पीढ़ी ना साथ चले
सु-संस्कारों की झोली भरो
जो जीवन भर तो साथ रहे
धन क्या खुशियाँ दे पायेगा
धन क्या भूख मिटा पायेगा
धन क्या समझेगा मानवता
धन क्या धर्म सिखा पायेगा
जो जीवन सभ्य सुसंस्कृत करदे
ऐसे भरदो तुम संस्कार
अमर रहेगा नाम तुम्हारा
मानवता पर भी होगा उपकार
नन्ही बूंदे अच्छी बातों की
देते हैं जो जीवन पर्यंत
बन जाती है अथाह जल राशि
जिसका कभी ना होता अंत
ekaaki
एकाकी
आज पुनह झंकृत हो बैठी
मेरे एकाकी मन की वीणा
ऐसे श्वास प्रकम्पित हो गए
जैसे तडपे जल बिन मीना
तडित दामिनी चमके अम्बर में
मैं उमड़ पड़ी बन दुःख की बदरी
नयनों से फूटें अश्रु के झरने
तालाब बने जल भर कर नद री
व्यर्थ लगे सान्त्वनाये सारी
चकनाचूर हुए सपने
दर्द के इन उठते ज्वारो में
बेगाने भी हुए अपने
आज पुनह झंकृत हो बैठी
मेरे एकाकी मन की वीणा
ऐसे श्वास प्रकम्पित हो गए
जैसे तडपे जल बिन मीना
तडित दामिनी चमके अम्बर में
मैं उमड़ पड़ी बन दुःख की बदरी
नयनों से फूटें अश्रु के झरने
तालाब बने जल भर कर नद री
व्यर्थ लगे सान्त्वनाये सारी
चकनाचूर हुए सपने
दर्द के इन उठते ज्वारो में
बेगाने भी हुए अपने
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
Beti ki vidaayi
बेटी की विदाई
अंगना में बाजे शहनाई
कल तक थी जो मेरी साँसे
हुई वह आज पराई
अंगना मैं बाजे शहनाई
दुल्हन का श्रींगार रचा कर
तारों से मांग सजा कर
आशीष दे कर भर- भर झोली
करूं मैं उसकी विदाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
खुशियों की बरात है आयी
फूलो की सौगात है लाई
देख चन्द्र विधु की झांकी
हुई मैं आज सौदाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
बेटी तो है अनमोल खजाना
विदा हुई तो दर्द यह जाना
संचित कर के बाबुल अंगना
पिया घर जा कर समाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
आशंकित मन क्यों घबराए
पिया घर जा कर सब सुख पाए
ठाकुरजी से लेत बलैयां
आँख मेरी क्यों भर आयी
अंगना में बाजे शहनाई
बेटी तो है धन ही पराया
पास इसे अपने कौन रख पाया
पिया संग जा बसे अपने घर में
यह सोच मैं करूं विदाई
अंगना में बजे शहनाई
अंगना में बाजे शहनाई
कल तक थी जो मेरी साँसे
हुई वह आज पराई
अंगना मैं बाजे शहनाई
दुल्हन का श्रींगार रचा कर
तारों से मांग सजा कर
आशीष दे कर भर- भर झोली
करूं मैं उसकी विदाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
खुशियों की बरात है आयी
फूलो की सौगात है लाई
देख चन्द्र विधु की झांकी
हुई मैं आज सौदाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
बेटी तो है अनमोल खजाना
विदा हुई तो दर्द यह जाना
संचित कर के बाबुल अंगना
पिया घर जा कर समाई
अंगना मैं बाजे शहनाई
आशंकित मन क्यों घबराए
पिया घर जा कर सब सुख पाए
ठाकुरजी से लेत बलैयां
आँख मेरी क्यों भर आयी
अंगना में बाजे शहनाई
बेटी तो है धन ही पराया
पास इसे अपने कौन रख पाया
पिया संग जा बसे अपने घर में
यह सोच मैं करूं विदाई
अंगना में बजे शहनाई
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
Hriday hmesha baccha rehta
हृदय हमेशा बच्चा रहता
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
निष्कपट निस्वार्थ और भोला-भाला
उन्बूझ रहस्य से अनभिग्य ,मतवाला
उन्मुक्त सोच होती वसुधा पर
न होता कल्पना का कोई रखवाला
जीवन होता रस से पूरित
और पनपता सीधा सच्चा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
विसंगतियों को लग जाता जाला
न निस्वार्थ प्रेम पर होता ताला
मैं उत्सुकता में हर पल जीता
मेरा नव रचना में हर पल बीता
भेद-भाव न होता दिल में
मन हर प्राणी को समझे अच्छा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
निष्कपट निस्वार्थ और भोला-भाला
उन्बूझ रहस्य से अनभिग्य ,मतवाला
उन्मुक्त सोच होती वसुधा पर
न होता कल्पना का कोई रखवाला
जीवन होता रस से पूरित
और पनपता सीधा सच्चा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
विसंगतियों को लग जाता जाला
न निस्वार्थ प्रेम पर होता ताला
मैं उत्सुकता में हर पल जीता
मेरा नव रचना में हर पल बीता
भेद-भाव न होता दिल में
मन हर प्राणी को समझे अच्छा
गर ह्रदय हमेशा रहता बच्चा
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
chint rekhaayen
चिंत- रेखाए.
मैं उधय्त होता करने परिवर्तित
विधि विधान के लिखे लेख
गहरा जाती है नभ मस्तक पर
आढ़ी तिरछी चिंत- रेख
हो न विचलित विपदाओं से
जो बढ़ता है पुरजोर निरंतर
कोई कूल क्या बांध सकेगा
जल धारा जब बहे चिरन्तर
प्रयतन भागीरथ ना होगा निष्फल
गंगा उतर स्वयम आएगी
रचने को संसार सुनहरा
वसुधा जगह स्वयं बनाएगी
ओ' चिंता की तिरछी रेखाओं
जा दूर कहीं नक्षत्र बनाओ
सौगंध तुम्हे है मेरे श्रम की
यूं निर्ममता से मत तडपाओ
मृत हो जाती मृदुल कल्पना
जनम तुम्हारा लेते ही
ओ'नागिन सी दिखती रेखाओं
ना यूं प्रतिभा को डस कर जाओ
मैं उधय्त होता करने परिवर्तित
विधि विधान के लिखे लेख
गहरा जाती है नभ मस्तक पर
आढ़ी तिरछी चिंत- रेख
हो न विचलित विपदाओं से
जो बढ़ता है पुरजोर निरंतर
कोई कूल क्या बांध सकेगा
जल धारा जब बहे चिरन्तर
प्रयतन भागीरथ ना होगा निष्फल
गंगा उतर स्वयम आएगी
रचने को संसार सुनहरा
वसुधा जगह स्वयं बनाएगी
ओ' चिंता की तिरछी रेखाओं
जा दूर कहीं नक्षत्र बनाओ
सौगंध तुम्हे है मेरे श्रम की
यूं निर्ममता से मत तडपाओ
मृत हो जाती मृदुल कल्पना
जनम तुम्हारा लेते ही
ओ'नागिन सी दिखती रेखाओं
ना यूं प्रतिभा को डस कर जाओ
शनिवार, 11 सितंबर 2010
Nayee ranjish ko bayaan kare
रंजिश को बयाँ करें
उदास है मंज़र
गुमसुम हैं चिडियों के चह-चहे
तन्हाई है चार सू
कोई तो जाकर उनसे कहे
ग़मगीन है शाम
उजड़े चमन के जलजले
घुटता है दम यहाँ
कोई भला कब तक सहे
उठी जब निगाह
तो जाना शर्मिंदा था मैं
रुकी जब सांस
तो जाना जिन्दा था मैं
डुबो कर मेरे लहू में
मुझे यूं जाने वाले
आह है बाकी
नई रंजिश को बयाँ करे
उदास है मंज़र
गुमसुम हैं चिडियों के चह-चहे
तन्हाई है चार सू
कोई तो जाकर उनसे कहे
ग़मगीन है शाम
उजड़े चमन के जलजले
घुटता है दम यहाँ
कोई भला कब तक सहे
उठी जब निगाह
तो जाना शर्मिंदा था मैं
रुकी जब सांस
तो जाना जिन्दा था मैं
डुबो कर मेरे लहू में
मुझे यूं जाने वाले
आह है बाकी
नई रंजिश को बयाँ करे
शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
Hindi diwas per
हिंदी दिवस
अपने ही घर में आज अगर मेरे बच्चे मेरी माँ (यानि अपनी नानी) से अनजान है तो दोषी में खुद हूँ
आज हमें क्यों आवश्यकता आन पड़ी है अपने ही देश में अपनी ही मात्र भाषा की दिवस मनाने की
क्यों हमें आवश्यकता आन पड़ी है अपने आप को यह याद दिलाने की कि हिंदी हमारी अपनी है
हम हिंदी भाषी है
किसी भी पशु पक्षी को कोई भी नहीं सिखाता कि कैसे बोलो
चिड़िया चह-चहाती है
तोता टें- टें करता है
सब अपनी बोली बोलते है
फिर हम हिन्दुस्तानी क्यों नहीं ?
अपने ही घर में आज अगर मेरे बच्चे मेरी माँ (यानि अपनी नानी) से अनजान है तो दोषी में खुद हूँ
आज हमें क्यों आवश्यकता आन पड़ी है अपने ही देश में अपनी ही मात्र भाषा की दिवस मनाने की
क्यों हमें आवश्यकता आन पड़ी है अपने आप को यह याद दिलाने की कि हिंदी हमारी अपनी है
हम हिंदी भाषी है
किसी भी पशु पक्षी को कोई भी नहीं सिखाता कि कैसे बोलो
चिड़िया चह-चहाती है
तोता टें- टें करता है
सब अपनी बोली बोलते है
फिर हम हिन्दुस्तानी क्यों नहीं ?
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
Thakur ka gaanv
ठाकुर का गाँव
सडकों पर फैले हज़ारों यूं कंकर
आँगन में बिखरा वो धेनु का गोबर
काँटों में जकड़े वो नन्हें धूल के कण
हाथ में माखन लिए दौड़ें बाल गण
बिताया है बचपन जहां नंगे पाँव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वो मिटटी की खुशबू खनक चूड़ियों की
पनघट पर जाती हंसी ग्वालिनो की
बारिश में ढहते वो कच्चे मकान
ग्राहक को तरसे वो खाली दुकान
माटी के चूल्हे में जलता अलाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वही घाट, कुंजें वो वीथि गोवर्धन
वही तीर कालिंदी हुआ कालिया मर्दन
वो डार कदम्ब की और वही निधिवन
वही वाटिका गोप माधव की चितवन
भर भर पिघलता उसके रस का जमाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
जहाँ जाने को मन हो यूं बेताब
जहां मधुरता का आये सैलाब
जहाँ अनमना मन भी हो जाए शांत
जहाँ जाने से मिटें सारे भ्रांत
जहाँ चपलता में आये ठहराव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
सडकों पर फैले हज़ारों यूं कंकर
आँगन में बिखरा वो धेनु का गोबर
काँटों में जकड़े वो नन्हें धूल के कण
हाथ में माखन लिए दौड़ें बाल गण
बिताया है बचपन जहां नंगे पाँव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वो मिटटी की खुशबू खनक चूड़ियों की
पनघट पर जाती हंसी ग्वालिनो की
बारिश में ढहते वो कच्चे मकान
ग्राहक को तरसे वो खाली दुकान
माटी के चूल्हे में जलता अलाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
वही घाट, कुंजें वो वीथि गोवर्धन
वही तीर कालिंदी हुआ कालिया मर्दन
वो डार कदम्ब की और वही निधिवन
वही वाटिका गोप माधव की चितवन
भर भर पिघलता उसके रस का जमाव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
जहाँ जाने को मन हो यूं बेताब
जहां मधुरता का आये सैलाब
जहाँ अनमना मन भी हो जाए शांत
जहाँ जाने से मिटें सारे भ्रांत
जहाँ चपलता में आये ठहराव
ऐसा है मेरे ठाकुर का गाँव!!
बुधवार, 8 सितंबर 2010
Var do he bhagwan
वर दो हे भगवान्
हो यशस्वी ,हो तेजवान
रहे स्वस्थ और हो ' बलवान
दीर्घायु हो शिर्शायण
ऐसा वर दो हे भगवान्
चमके माँ की आँख की तारा
बने पिता का सबल सहारा
कर्मठ को कर बने महान
ऐसा वर दो हे भगवान्
हो सत्यवान करे पुरषार्थ
प्रयत्न हमेशा करे निस्वार्थ
हो मुट्ठी में उसके जहान
ऐसा वर दो हे भगवान्
हो यशस्वी ,हो तेजवान
रहे स्वस्थ और हो ' बलवान
दीर्घायु हो शिर्शायण
ऐसा वर दो हे भगवान्
चमके माँ की आँख की तारा
बने पिता का सबल सहारा
कर्मठ को कर बने महान
ऐसा वर दो हे भगवान्
हो सत्यवान करे पुरषार्थ
प्रयत्न हमेशा करे निस्वार्थ
हो मुट्ठी में उसके जहान
ऐसा वर दो हे भगवान्
Jeevan ki chatri
जीवन की छतरी
जैसे तेज़ बारिश में
छतरी साथ नहीं देती है
बौछार यहाँ वहां तहां से
बदन को भिगो जाती है
वैसे ही
विपरीत काल में
आशा की चादर साथ नहीं देती है
निराशा यहाँ वहां तहां से
जीवन को छू जाती है
जैसे तेज़ बारिश में
छतरी साथ नहीं देती है
बौछार यहाँ वहां तहां से
बदन को भिगो जाती है
वैसे ही
विपरीत काल में
आशा की चादर साथ नहीं देती है
निराशा यहाँ वहां तहां से
जीवन को छू जाती है
laghuta Jeevan Ki
लघुता जीवन की
हरे दरख्तों की
फलों से लदी झुकी
लचकती हुई डालियों के बीच
आसमान को छूती
सूखी शुष्क शाखा
कराती है अपने बौनेपन का एहसास
लघुता यूं जीवन की
इंसान के परिमाप को बढाती है
लकिन अंदर से कितना खोखला कर जाती है
चाह कर भी मानव
सब से मिल नहीं पाता है
और एक जैसा होते हुए भी
अपने को दूसरों से भिन्न पाता है
हरे दरख्तों की
फलों से लदी झुकी
लचकती हुई डालियों के बीच
आसमान को छूती
सूखी शुष्क शाखा
कराती है अपने बौनेपन का एहसास
लघुता यूं जीवन की
इंसान के परिमाप को बढाती है
लकिन अंदर से कितना खोखला कर जाती है
चाह कर भी मानव
सब से मिल नहीं पाता है
और एक जैसा होते हुए भी
अपने को दूसरों से भिन्न पाता है
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
Tumhara ehsaas
तुम्हारा एहसास
आकर मुझे यूं , जब मुझसे चुराया तुमने
जागते हुए कोई ख्वाब दिखाया तुमने
भूल चुके थे कभी दर्द भी होता है सीने में
चुपके से आकर यह एहसास जगाया तुमने
अपने हाथो की लकीरों में मुझे यूं बसाया तुमने
प्यार का दस्तूर हर वजह निभाया तुमने
मर कर भी ना कभी होंगे जुदा हम दोनों
हर सांस की आवाज़ में यह गीत सुनाया तुमने
कितने तन्हा , बिन तुम्हारे थे यह जाना हमने
जी कर भी ना जिन्दा थे यह माना हमने
जल उठेंगे हज़ारो चिराग यूं राहों में
अपने प्यार का दिया , जब दिल में जलाया तुमने
आकर मुझे यूं , जब मुझसे चुराया तुमने
जागते हुए कोई ख्वाब दिखाया तुमने
भूल चुके थे कभी दर्द भी होता है सीने में
चुपके से आकर यह एहसास जगाया तुमने
अपने हाथो की लकीरों में मुझे यूं बसाया तुमने
प्यार का दस्तूर हर वजह निभाया तुमने
मर कर भी ना कभी होंगे जुदा हम दोनों
हर सांस की आवाज़ में यह गीत सुनाया तुमने
कितने तन्हा , बिन तुम्हारे थे यह जाना हमने
जी कर भी ना जिन्दा थे यह माना हमने
जल उठेंगे हज़ारो चिराग यूं राहों में
अपने प्यार का दिया , जब दिल में जलाया तुमने
रविवार, 5 सितंबर 2010
Jeevan hai vyapaar
जीवन एक व्यापार
यह जीवन है एक व्यापार
देना पड़ता है मूल्य यहाँ
कुछ मिलता नहीं उपहार
प्रकृति की यह अतुल संपदा
भरपूर खजाने सौरभ के
लूट लूट जग हुआ अचंभित
अनभिग्य रहा वह व्यवहार से
अब होने लगे खजाने खाली
ओ' प्राकृतिक सम्पदा के वाली
बदले में मांग रही यह धरा
हमसे जीवन का अनुपम प्यार
आओ समझे रीत व्यापर की
आज नकद और कल उधार की
जो बोया है सो पायो गे
जैसा काटो वह खाओ गे
जीवन के इस रंग मंच पर
अभिनय करता मानव जीवन
तरह तरह के किरदारों का
मंचन करता मानव जीवन
सारा जीवन होम करने पर ही
मिलता है कफ़न गज चार
यह जीवन है एक व्यापार
यह जीवन है एक व्यापार
देना पड़ता है मूल्य यहाँ
कुछ मिलता नहीं उपहार
प्रकृति की यह अतुल संपदा
भरपूर खजाने सौरभ के
लूट लूट जग हुआ अचंभित
अनभिग्य रहा वह व्यवहार से
अब होने लगे खजाने खाली
ओ' प्राकृतिक सम्पदा के वाली
बदले में मांग रही यह धरा
हमसे जीवन का अनुपम प्यार
आओ समझे रीत व्यापर की
आज नकद और कल उधार की
जो बोया है सो पायो गे
जैसा काटो वह खाओ गे
जीवन के इस रंग मंच पर
अभिनय करता मानव जीवन
तरह तरह के किरदारों का
मंचन करता मानव जीवन
सारा जीवन होम करने पर ही
मिलता है कफ़न गज चार
यह जीवन है एक व्यापार
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010
Angna mahke harsrigaar
अंगना महके हरसिंगार
तरु नव कोंपल फूटे सुरभित
डार- डार पर गुन्चे कुसुमित
लाये वासंती बयार
अंगना महके हरसिंगार
झरे फूल हो धरा सुशोभित
कहती कर मन को सम्मोहित
कब हुआ हूँ मैं बेकार
अंगना महके हरसिंगर
देखो कैसे पुष्प है गर्वित
जीवन सार है इसमें गर्भित
प्रयत्न ना होता निष्फल बेकार
अंगना महके हरसिंगार
तरु नव कोंपल फूटे सुरभित
डार- डार पर गुन्चे कुसुमित
लाये वासंती बयार
अंगना महके हरसिंगार
झरे फूल हो धरा सुशोभित
कहती कर मन को सम्मोहित
कब हुआ हूँ मैं बेकार
अंगना महके हरसिंगर
देखो कैसे पुष्प है गर्वित
जीवन सार है इसमें गर्भित
प्रयत्न ना होता निष्फल बेकार
अंगना महके हरसिंगार
swarth
स्वार्थ
क्यों समझ नहीं पाते हम दूजे की उलझन
कैसे मरते हैं रोज़ और जीते हैं जीवन
क्यों बुनते रहते हैं अपने ही स्वप्पन जाल
और उनमें रखतें हैं बस अपना ही ख्याल
कर अर्जित ज्ञान हुए हम दक्ष, प्रवीण
लेकिन दिल से हो चुके है हम संगीन
समझ नहीं पाते मानव की गुणवत्ता
भौतिकता की आड़ में भूले मानवता
भूल चुके हैं हम अपना अपनत्व यहाँ
हो चुका हैं बौना सब व्यक्तित्व यहाँ
मानवता की खोद कब्र चौराहे पर
खोज रहें हैं हैं हम अपना अमरत्व यहाँ
क्यों समझ नहीं पाते हम दूजे की उलझन
कैसे मरते हैं रोज़ और जीते हैं जीवन
क्यों बुनते रहते हैं अपने ही स्वप्पन जाल
और उनमें रखतें हैं बस अपना ही ख्याल
कर अर्जित ज्ञान हुए हम दक्ष, प्रवीण
लेकिन दिल से हो चुके है हम संगीन
समझ नहीं पाते मानव की गुणवत्ता
भौतिकता की आड़ में भूले मानवता
भूल चुके हैं हम अपना अपनत्व यहाँ
हो चुका हैं बौना सब व्यक्तित्व यहाँ
मानवता की खोद कब्र चौराहे पर
खोज रहें हैं हैं हम अपना अमरत्व यहाँ
बुधवार, 1 सितंबर 2010
koyee anjaanaa sa
कोई अनजाना सा
झांक कर चिलमन से मुझे यूं , चुपचाप चला जाता है कोई
दूर से कर के इशारा मुझे यूं , पास अपने बुलाता है कोई
ता उम्र जख्म जो मिले है जमाने से,
चुपचाप उनको सहला जाता है कोई
दहकती है एक आग हर वक्त जो सीने में,
अपनी साँसों की गर्म हवाओं से बुझाता है कोई
खौफ -ए- रुसवाई की चादर में लिपटा सा वो है
खुल कर सामने आने से कतराता है कोई
झांक कर चिलमन से मुझे यूं , चुपचाप चला जाता है कोई
दूर से कर के इशारा मुझे यूं , पास अपने बुलाता है कोई
ता उम्र जख्म जो मिले है जमाने से,
चुपचाप उनको सहला जाता है कोई
दहकती है एक आग हर वक्त जो सीने में,
अपनी साँसों की गर्म हवाओं से बुझाता है कोई
खौफ -ए- रुसवाई की चादर में लिपटा सा वो है
खुल कर सामने आने से कतराता है कोई
vafaa
वफ़ा
फिर यूं कभी वादा ना हम से किया करो
गर हो कभी यह इल्म इसके संग जिया करो
वर्ना बेवफाई का सबब ना पूछ पाओगे
भीड़ में खो जायगें, ना ढूंढ पाओगे
वफ़ा जब लौट कर आएगी हम को आजमाने को
बचेगा कुछ भी ना अवशेष हम को मनाने को
लौटा ना पाएंगी तुम्हारी दस्तकें मुझको
मुझे यूं मौत ले जाए , तुम खड़े मौत को तरसो.
फिर यूं कभी वादा ना हम से किया करो
गर हो कभी यह इल्म इसके संग जिया करो
वर्ना बेवफाई का सबब ना पूछ पाओगे
भीड़ में खो जायगें, ना ढूंढ पाओगे
वफ़ा जब लौट कर आएगी हम को आजमाने को
बचेगा कुछ भी ना अवशेष हम को मनाने को
लौटा ना पाएंगी तुम्हारी दस्तकें मुझको
मुझे यूं मौत ले जाए , तुम खड़े मौत को तरसो.
शनिवार, 28 अगस्त 2010
Udaasi Ki Fitrat
उदासी की फितरत
उदासी कर गयी हर वर्क पर यूं दस्तखत
बहार सी रूह भी पतझर बन गयी यारो
ख़ुशी ना दर कभी आयी मेहमान बन कर भी
रस्म-ए-मेहमानवाजी भी बिसर गयी यारो
ना करो अब दवा इस मर्ज़ उदासी का
उदासी की फितरत ही बन गयी यारो
उदासी कर गयी हर वर्क पर यूं दस्तखत
बहार सी रूह भी पतझर बन गयी यारो
ख़ुशी ना दर कभी आयी मेहमान बन कर भी
रस्म-ए-मेहमानवाजी भी बिसर गयी यारो
ना करो अब दवा इस मर्ज़ उदासी का
उदासी की फितरत ही बन गयी यारो
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
ek vyktitv
एक व्यक्तित्व
एक व्यक्तित्व
उजला-उजला सा
रहस्य सरीखा
खुलता-खुलता सा
दिन चढ़ता तो ,दिनकर जैसा
तेज, प्रतापी, प्रबलकर वैसा
है उन्नत भाल
भुज विशाल
तुरग चाल
स्वछंद मुखर
मुस्कान अधर
दिन भर रहता ,बिलकुल व्यस्त
शाम ढले , सूर्य होता अस्त
तो बन जाता बिलकुल चंदा सा
मृदु कोमल ठंडा ठंडा सा
उसकी कंठ मिठास
देती दिलासा
और विश्वास
वह कल भी था , आज भी है
और कल भी रहेगा
मेरे आस-पास !!!!!!
एक व्यक्तित्व
एक व्यक्तित्व
उजला-उजला सा
रहस्य सरीखा
खुलता-खुलता सा
दिन चढ़ता तो ,दिनकर जैसा
तेज, प्रतापी, प्रबलकर वैसा
है उन्नत भाल
भुज विशाल
तुरग चाल
स्वछंद मुखर
मुस्कान अधर
दिन भर रहता ,बिलकुल व्यस्त
शाम ढले , सूर्य होता अस्त
तो बन जाता बिलकुल चंदा सा
मृदु कोमल ठंडा ठंडा सा
उसकी कंठ मिठास
देती दिलासा
और विश्वास
वह कल भी था , आज भी है
और कल भी रहेगा
मेरे आस-पास !!!!!!
एक व्यक्तित्व
बुधवार, 25 अगस्त 2010
batlaaye kaun
बतलाये कौन?
बेचैन हैं उनसे मिलने को
यह उनको जा बतलाये कौन
एक दर्द छिपा है सीने में
यह उनको जा दिखलाए कौन ?
मेरे शहर के लोगों का अब
तारुफ़ हैं मेरी तन्हाई से
ना करदूं सिजदा बेबस हो कर
वाकिफ है मेरी रुसवाई से
एक कसक सी उठती है सीने मे
अब उनको जा समझाए कौन?
समझ दीवाना छोड़ दिया है
मेरे शहर के लोगो ने
उल्फत में भी जी लेता हूँ
मान लिया है लोगो ने
अब सुर्ख आँखों के सबब को
पूछे कौन ,बतलाये कौन ?
बेचैन हैं उनसे मिलने को
यह उनको जा बतलाये कौन
एक दर्द छिपा है सीने में
यह उनको जा दिखलाए कौन ?
मेरे शहर के लोगों का अब
तारुफ़ हैं मेरी तन्हाई से
ना करदूं सिजदा बेबस हो कर
वाकिफ है मेरी रुसवाई से
एक कसक सी उठती है सीने मे
अब उनको जा समझाए कौन?
समझ दीवाना छोड़ दिया है
मेरे शहर के लोगो ने
उल्फत में भी जी लेता हूँ
मान लिया है लोगो ने
अब सुर्ख आँखों के सबब को
पूछे कौन ,बतलाये कौन ?
koyee sath nahi deta
कोई साथ नहीं देता
अब गम भी साथ नहीं देता
हम जैसे गम के मारों का
कोई मर्ज़ भी साथ नहीं देता
हम जैसे दर्द के मारों का
माझी भी साथ नहीं देता
हम जैसे मझधारो का
दरिया भी साथ नहीं देता
हम जैसे टूटे दश्त किनारों का
मधुबन भी साथ नहीं देता
हम जैसे पतझारों का
अपना गाँव नहीं बसता
हम जैसे बंजारों का
जाने वालों की क्या चिंता
आने वाले की फिक्र करे कोई
अब रोक लिया है मार्ग
किसी ने आती हई बहारों का
अब गम भी साथ नहीं देता
हम जैसे गम के मारों का
कोई मर्ज़ भी साथ नहीं देता
हम जैसे दर्द के मारों का
माझी भी साथ नहीं देता
हम जैसे मझधारो का
दरिया भी साथ नहीं देता
हम जैसे टूटे दश्त किनारों का
मधुबन भी साथ नहीं देता
हम जैसे पतझारों का
अपना गाँव नहीं बसता
हम जैसे बंजारों का
जाने वालों की क्या चिंता
आने वाले की फिक्र करे कोई
अब रोक लिया है मार्ग
किसी ने आती हई बहारों का
Shubh kaamnaayen
शुभ कामनाएं
बन राज हंस, जीवन सरिता पार करो तुम
बन दीपक इस जग तम का नाश करो तुम
मानवता के बन कर सजग प्रहरी
मानव का कल्याण करो तुम
बन मेहा उल्लास का बरसो आँगन में
बन नेहा परिहास का झांको चिलमन से
बन सुमन कचनार की महको उपवन में
बन वसंत बयार कि गुजरो मधुबन से
हो पर्वत की तुहिन श्रृंखला आसमान को छू कर आयो
हो दानिश, कि भेद क्षीर-नीर का कर पायो
बढे सामर्थ्य तुम्हारा कि दिन-ओ-दिन करो तरक्की
करे कामना यही कि ईश दे तुम को शक्ति
बन राज हंस, जीवन सरिता पार करो तुम
बन दीपक इस जग तम का नाश करो तुम
मानवता के बन कर सजग प्रहरी
मानव का कल्याण करो तुम
बन मेहा उल्लास का बरसो आँगन में
बन नेहा परिहास का झांको चिलमन से
बन सुमन कचनार की महको उपवन में
बन वसंत बयार कि गुजरो मधुबन से
हो पर्वत की तुहिन श्रृंखला आसमान को छू कर आयो
हो दानिश, कि भेद क्षीर-नीर का कर पायो
बढे सामर्थ्य तुम्हारा कि दिन-ओ-दिन करो तरक्की
करे कामना यही कि ईश दे तुम को शक्ति
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
Rone walon se
रोने वालों से
रोने से मिल जाती अगर मंजिल
तो आज एक दरिया आंसू का मेरा भी होता
रोने से कट जाता कठिन सफ़र यूं
तो शबनम के हर कतरे पे मेरे आंसू का निशां होता
यूं रोने से बदल जाता नसीबा अगर
रो- रो कर मैंने भी हाल बेहाल किया होता
ऐ रोने वाले! समझ ले तू मर्म रोने का
पछताए गा वर्ना कि सिवा रोने के कुछ और किया होता
रोने से मिल जाती अगर मंजिल
तो आज एक दरिया आंसू का मेरा भी होता
रोने से कट जाता कठिन सफ़र यूं
तो शबनम के हर कतरे पे मेरे आंसू का निशां होता
यूं रोने से बदल जाता नसीबा अगर
रो- रो कर मैंने भी हाल बेहाल किया होता
ऐ रोने वाले! समझ ले तू मर्म रोने का
पछताए गा वर्ना कि सिवा रोने के कुछ और किया होता
kha do sab se
कह दो सब से
कह दो ! इन घटाओं से
नभ में छा जाएँ
फिरोजी आलम बनाए
कह दो ! इन हवाओं से
मस्त सन सनाएँ
नया सरगम बनाएं
कह दो! इन बहारों से
कोई गीत गुन गुनाएं
उत्सव मनाएं
आयी शुभ वेला है
संग उत्साह अलबेला है
होने को स्वयं सिद्ध
कोई चल पड़ा अकेला है
कह दो ! इन घटाओं से
नभ में छा जाएँ
फिरोजी आलम बनाए
कह दो ! इन हवाओं से
मस्त सन सनाएँ
नया सरगम बनाएं
कह दो! इन बहारों से
कोई गीत गुन गुनाएं
उत्सव मनाएं
आयी शुभ वेला है
संग उत्साह अलबेला है
होने को स्वयं सिद्ध
कोई चल पड़ा अकेला है
सोमवार, 23 अगस्त 2010
Neer Ki dhara
नीर की धारा
जैसे नीरद से बहती नीर की धारा
धो देती है धरती का कलुष सारा
वैसे ही नैनो से बहती अश्रु धारा
कर देती है ख़तम मन-मुटाव सारा
ओढ़ चुनरिया इन्द्रधनुष की सतरंगी
सज जाती है धरा दुल्हन सी नवरंगी
नव सृजन की लिए कामना करती अभिनन्दन
निश्चलता से हाथ जोड़ करती जगवंदन
हो जाता है मानस मंथन अश्रु वर्षा से
शीतल हो जाता अंतस संतप्त विधा से
धुल जाता अवसाद होता व्यक्तित्व निखार
हो जाता है मानव उधय्त करने को पुरषार्थ
(अपने जनम दिन पर स्वयं को विशेष उपहार )
जैसे नीरद से बहती नीर की धारा
धो देती है धरती का कलुष सारा
वैसे ही नैनो से बहती अश्रु धारा
कर देती है ख़तम मन-मुटाव सारा
ओढ़ चुनरिया इन्द्रधनुष की सतरंगी
सज जाती है धरा दुल्हन सी नवरंगी
नव सृजन की लिए कामना करती अभिनन्दन
निश्चलता से हाथ जोड़ करती जगवंदन
हो जाता है मानस मंथन अश्रु वर्षा से
शीतल हो जाता अंतस संतप्त विधा से
धुल जाता अवसाद होता व्यक्तित्व निखार
हो जाता है मानव उधय्त करने को पुरषार्थ
(अपने जनम दिन पर स्वयं को विशेष उपहार )
रविवार, 22 अगस्त 2010
main hoon pani
मैं हूँ पानी
जब तक मैं पानी हूँ
बहते दरिया का
तभी तक है मुझ में रवानी
मिल जाता हूँ किसी बादल से
तो हूँ संगीत बारिश का
हो जाता रूहानी
मिलता हूँ हवा से
ले कर रूप शबनम का
भरता हूँ कली कलिका में
एक खुशबू सुहानी
गर मिल जाऊ किसी जौहड़ से
सड़ जाता हूँ खड़ा -खड़ा
तो काल ही
है मेरी निशानी
ठहरे जीवन
तो रुक जाएँ साँसें
बस चारों तरफ
मौत की छा जाये चुप्पी
और चलता है जीवन
उमंग देता है अंतस में
बस यही है मेरी कहानी
जब तक मैं पानी हूँ
बहते दरिया का
तभी तक है मुझ में रवानी
मिल जाता हूँ किसी बादल से
तो हूँ संगीत बारिश का
हो जाता रूहानी
मिलता हूँ हवा से
ले कर रूप शबनम का
भरता हूँ कली कलिका में
एक खुशबू सुहानी
गर मिल जाऊ किसी जौहड़ से
सड़ जाता हूँ खड़ा -खड़ा
तो काल ही
है मेरी निशानी
ठहरे जीवन
तो रुक जाएँ साँसें
बस चारों तरफ
मौत की छा जाये चुप्पी
और चलता है जीवन
उमंग देता है अंतस में
बस यही है मेरी कहानी
शनिवार, 21 अगस्त 2010
Praat Suhani
प्रात सुहानी
रात्रि के तामस को हरती
आती है जब प्रात सुहानी
सर्वत्र आशा की स्वर्णिम आभा
बिखरा जाती है प्रात सुहानी
रात-रात भर मौन रागिनी
अश्रु पूरित करती है
नभ से गिरती जलकण बूँदें
धरती आँचल में भर लेती है
कुसुम और तरु- पल्लवियों पर
फैली नन्ही जल- कण बूंदे
और नहीं कुछ, बस शबनम है
ऐसा बतलाती प्रात सुहानी
नव कलिका हरित वसुधा पर
पीत वसन जब धारण करती
अलि कुंजो की गुंजन से
मधुर छटा गुंजित हो जाती
अलसाया गदराया नव यौवन
उठता है अंगडाई ले कर
जीवन कर लो रस से सिंचित
ऐसा समझाती प्रात सुहानी
रात्रि के तामस को हरती
आती है जब प्रात सुहानी
सर्वत्र आशा की स्वर्णिम आभा
बिखरा जाती है प्रात सुहानी
रात-रात भर मौन रागिनी
अश्रु पूरित करती है
नभ से गिरती जलकण बूँदें
धरती आँचल में भर लेती है
कुसुम और तरु- पल्लवियों पर
फैली नन्ही जल- कण बूंदे
और नहीं कुछ, बस शबनम है
ऐसा बतलाती प्रात सुहानी
नव कलिका हरित वसुधा पर
पीत वसन जब धारण करती
अलि कुंजो की गुंजन से
मधुर छटा गुंजित हो जाती
अलसाया गदराया नव यौवन
उठता है अंगडाई ले कर
जीवन कर लो रस से सिंचित
ऐसा समझाती प्रात सुहानी
ek khwaab
एक ख्वाब
जो हकीकत मान बैठी थी जिंदगी
हर एक रूह में
खुद को ढूँढती थी जिंदगी
साबुत दर्पण में
टूटे बिम्ब से यह एहसास हुआ
कि टूटे दर्पण में
अपना बिम्ब जोड़ती थी जिंदगी
जो हकीकत मान बैठी थी जिंदगी
हर एक रूह में
खुद को ढूँढती थी जिंदगी
साबुत दर्पण में
टूटे बिम्ब से यह एहसास हुआ
कि टूटे दर्पण में
अपना बिम्ब जोड़ती थी जिंदगी
Muskuraahat
मुस्कराहट
पूछा हम ने एक दिन मुस्कराहट से
कहाँ रहती हो ?
आंधी की तरह आती हो
तूफ़ान की तरह चली जाती हो
एक झलक दिखला कर गुम हो जाती हो!
मुस्कुरा कर बोली यूं
सीप के मोती में
पूनम की ज्योति में
पवन की ताल में
सागर उत्ताल में
जिसमे भी निश्छलता पाओगी
उसकी मुस्कराहट में मुझे
दमकता हुआ पाओगी
पूछा हम ने एक दिन मुस्कराहट से
कहाँ रहती हो ?
आंधी की तरह आती हो
तूफ़ान की तरह चली जाती हो
एक झलक दिखला कर गुम हो जाती हो!
मुस्कुरा कर बोली यूं
सीप के मोती में
पूनम की ज्योति में
पवन की ताल में
सागर उत्ताल में
जिसमे भी निश्छलता पाओगी
उसकी मुस्कराहट में मुझे
दमकता हुआ पाओगी
शुक्रवार, 20 अगस्त 2010
ktra-a-aansoo
कतरा- ए- आंसू
आज फिर !
हमने अपने चेहरे को
आंसूओ से धोया है
और लोग !
कहते हैं चेहरे की
खूबसूरती में निखर आया है.
ऐ रोने वाले ! सीख के रोने का सलीका
वरना लोग क्या जाने
तेरे आंसू का हर एक कतरा
दिल के समुंदर में
तूफ़ान लाया है !
आज फिर !
हमने अपने चेहरे को
आंसूओ से धोया है
और लोग !
कहते हैं चेहरे की
खूबसूरती में निखर आया है.
ऐ रोने वाले ! सीख के रोने का सलीका
वरना लोग क्या जाने
तेरे आंसू का हर एक कतरा
दिल के समुंदर में
तूफ़ान लाया है !
khamoshi ki baat
ख़ामोशी
खामोश ख़ामोशी !
अपनी रह पर
निरंतर चलती रही
निर्झर सरिता नद !
इसे पास बुलाते रहे
सूखे पत्ते !
इसे अपनी खडखडाहट से
निमंत्रण देते रहे
सागर अपने आगोश में
समेटने को व्याकुल रहा
चंदा अपना साथी
बनाने को आतुर रहा
पर ख़ामोशी
खामोश निगाहों से तकती रही
तन्हा ही खामोश राहों पर
चलती रही
खामोश ख़ामोशी !
अपनी रह पर
निरंतर चलती रही
निर्झर सरिता नद !
इसे पास बुलाते रहे
सूखे पत्ते !
इसे अपनी खडखडाहट से
निमंत्रण देते रहे
सागर अपने आगोश में
समेटने को व्याकुल रहा
चंदा अपना साथी
बनाने को आतुर रहा
पर ख़ामोशी
खामोश निगाहों से तकती रही
तन्हा ही खामोश राहों पर
चलती रही
khamoshi
ख़ामोशी
कौन कहता है?
ख़ामोशी
बात नहीं करती
गुप- चुप गुप-चुप रहती है
कुछ इज़हार नहीं करती!
होना पड़ता है
खामोश इसे सुनने के लिए
बडबोले के साथ
मगर यह
बात नहीं करती
कौन कहता है?
ख़ामोशी
बात नहीं करती
गुप- चुप गुप-चुप रहती है
कुछ इज़हार नहीं करती!
होना पड़ता है
खामोश इसे सुनने के लिए
बडबोले के साथ
मगर यह
बात नहीं करती
bin tumhare
बिन तुम्हारे
जी रहे थे और जी ही लेंगे
बिन तुम्हारे
पर!
भुला ना पायेंगे
वोह पल
जो बीते संग तुम्हारे
जाने वाले! इतना तो
बताते जाना
कब लौट कर आओगे
तुम! फिर पास हमारे
जी रहे थे और जी ही लेंगे
बिन तुम्हारे
पर!
भुला ना पायेंगे
वोह पल
जो बीते संग तुम्हारे
जाने वाले! इतना तो
बताते जाना
कब लौट कर आओगे
तुम! फिर पास हमारे
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
Paisa yaan pyaar
पैसा याँ प्यार
सच है!
ज़रूरी है, जीवन में पैसा
पर पैसा ही ज़रूरी है
यह विचार कैसा?
चुन लो जो चुनना है
पर!
यह भी ख्वाब तुम्हारा अपना है
क्या चाहिए?
प्यार की गूँज यां पैसे की खनखनाहट
प्यार की ठंडक यां पैसे की गर्माहट
बांटो तो बढे
दिनों दिन प्यार का रंग
दूना चढ़े
पैसे में फिसलन है
हाथ में फिसलता है
जेब से खिसकता है
चाहत हो मन में इसकी अगर
तो सारा जीवन ही फिसलता है
प्यार और पैसा!!!
बिलकुल विरोधाभास है
भेद ना कर पाए जो इन दोनों में
उसका जीवन ही कास है
सच है!
ज़रूरी है, जीवन में पैसा
पर पैसा ही ज़रूरी है
यह विचार कैसा?
चुन लो जो चुनना है
पर!
यह भी ख्वाब तुम्हारा अपना है
क्या चाहिए?
प्यार की गूँज यां पैसे की खनखनाहट
प्यार की ठंडक यां पैसे की गर्माहट
बांटो तो बढे
दिनों दिन प्यार का रंग
दूना चढ़े
पैसे में फिसलन है
हाथ में फिसलता है
जेब से खिसकता है
चाहत हो मन में इसकी अगर
तो सारा जीवन ही फिसलता है
प्यार और पैसा!!!
बिलकुल विरोधाभास है
भेद ना कर पाए जो इन दोनों में
उसका जीवन ही कास है
Jeevan ka ytharth
जीवन का यथार्थ
जी रहे हैं जो यहाँ, उन्हें मौत का इंतज़ार है
मर रहे है जो उन्हें एक श्वास की आस है
जो मिला वह व्यर्थ है, जो ना मिले वह अर्थ है
समेट लूं यह विश्व सारा इसमे क्या अनर्थ है
तू समझ इस प्राण के अभिसार को ऐ ना-समझ
पी चुके भर-भर समंदर फिर भी लकिन प्यास है
ना है अपरिचित और ना ही कुछ विस्मृत हुआ
देख अपना हाल मन स्वयं से अचंभित हुआ
पा लिया सब कुछ मगर एक फांस सी चुभती रही
जीत चुके अब जगत सारा, इस जीत पर ही त्रास है
जी रहे हैं जो यहाँ, उन्हें मौत का इंतज़ार है
मर रहे है जो उन्हें एक श्वास की आस है
जो मिला वह व्यर्थ है, जो ना मिले वह अर्थ है
समेट लूं यह विश्व सारा इसमे क्या अनर्थ है
तू समझ इस प्राण के अभिसार को ऐ ना-समझ
पी चुके भर-भर समंदर फिर भी लकिन प्यास है
ना है अपरिचित और ना ही कुछ विस्मृत हुआ
देख अपना हाल मन स्वयं से अचंभित हुआ
पा लिया सब कुछ मगर एक फांस सी चुभती रही
जीत चुके अब जगत सारा, इस जीत पर ही त्रास है
Trishnaay jeevan ki
तृष्णा जीवन की
भटकाती रहती हैं तृष्णाए जीवन की
फिर भी हसरत बाकी
हद है पागलपन की
सुख बोया दुःख काटा
हर सौदे में घाटा
सारा विष पी कर भी
मैंने अमृत बांटा
भटकाती रहती है
इच्छाए जीवन की
फिर भी हसरत बाकी
हद है पागल-पन की
भटकाती रहती हैं तृष्णाए जीवन की
फिर भी हसरत बाकी
हद है पागलपन की
सुख बोया दुःख काटा
हर सौदे में घाटा
सारा विष पी कर भी
मैंने अमृत बांटा
भटकाती रहती है
इच्छाए जीवन की
फिर भी हसरत बाकी
हद है पागल-पन की
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
Akelaa
अकेला
मन कितना आज अकेला
पीड़ाओं की गठरी भारी
दूर लगा है मेला
आशाएं दम तोड़ चुकीं हैं
आजीवन संग छोड़ चुकीं हैं
मरघट सा खामोश हुआ है
यह जीवन का रेला
मन कितना आज अकेला
हास और परिहास है झूठे
बिछड़े सब और टूटे सपनें
मन का हारिल नीलगगन में
उड़ता गेला गेला
मन कितना आज अकेला
मन कितना आज अकेला
पीड़ाओं की गठरी भारी
दूर लगा है मेला
आशाएं दम तोड़ चुकीं हैं
आजीवन संग छोड़ चुकीं हैं
मरघट सा खामोश हुआ है
यह जीवन का रेला
मन कितना आज अकेला
हास और परिहास है झूठे
बिछड़े सब और टूटे सपनें
मन का हारिल नीलगगन में
उड़ता गेला गेला
मन कितना आज अकेला
रविवार, 15 अगस्त 2010
vrishti
वृष्टि
टापुर टुपुर वृष्टि पड़े
पपीहा पीयू बोल उठे
लगी सावान की यह झड़ी
क्यों पिया से दूर पड़ी
पिया गए हैं विदेश
भेजा पांति ना सन्देश
आयी मिलने की घडी
उठे तन में क्लेश
सुन दामिनी की चाप
बड़े मन में संताप
छाये घटा घनघोर
विरह का ना कोए छोर
वृष्टि की टप-टप
देती विरह की ताल
जैसे अंसुवन सींचे
राग मेघ मल्हार
टापुर टुपुर वृष्टि पड़े
पपीहा पीयू बोल उठे
लगी सावान की यह झड़ी
क्यों पिया से दूर पड़ी
पिया गए हैं विदेश
भेजा पांति ना सन्देश
आयी मिलने की घडी
उठे तन में क्लेश
सुन दामिनी की चाप
बड़े मन में संताप
छाये घटा घनघोर
विरह का ना कोए छोर
वृष्टि की टप-टप
देती विरह की ताल
जैसे अंसुवन सींचे
राग मेघ मल्हार
pyaar
प्यार
प्यार का कोई नाम नहीं, प्यार का परिमाप नहीं
प्यार की कोई सीमा नहीं, बिन प्यार जीना नहीं
प्यार एक भक्ति है
सूर मीरा तुलसी की शांत अभिव्यक्ति है
प्यार आसक्ति है
मनोबल बढाती है, विषमता में जीना सिखलाती है
मोहन की राधा सी , आह्लाह्दिनी शक्ति है
प्यार सखा भाव है
कृष्ण की सुदामा को ,त्याग के सुख की छाँव है
प्यार माँ की ममता है
मरुथल की तपन में देती शीतलता है
प्यार गुरु की गुरुता है
देख कच्ची शिष्य नीवं , देती उसे दृढ़ता है
क्या प्यार एक वासना है?
नहीं, कामदेव से वन्दित एक सशक्त उपासना है
सृजन का यह रूप है , सार्थकता लिए जीवन में
एक सुनहरी धूप है
प्यार एक भावना है जो दिल से दिल को पिरोती है
सब एक माला के मोती हो , ऐसे सपने संजोती है
प्यार का कोई नाम नहीं, प्यार का परिमाप नहीं
प्यार की कोई सीमा नहीं, बिन प्यार जीना नहीं
प्यार एक भक्ति है
सूर मीरा तुलसी की शांत अभिव्यक्ति है
प्यार आसक्ति है
मनोबल बढाती है, विषमता में जीना सिखलाती है
मोहन की राधा सी , आह्लाह्दिनी शक्ति है
प्यार सखा भाव है
कृष्ण की सुदामा को ,त्याग के सुख की छाँव है
प्यार माँ की ममता है
मरुथल की तपन में देती शीतलता है
प्यार गुरु की गुरुता है
देख कच्ची शिष्य नीवं , देती उसे दृढ़ता है
क्या प्यार एक वासना है?
नहीं, कामदेव से वन्दित एक सशक्त उपासना है
सृजन का यह रूप है , सार्थकता लिए जीवन में
एक सुनहरी धूप है
प्यार एक भावना है जो दिल से दिल को पिरोती है
सब एक माला के मोती हो , ऐसे सपने संजोती है
gungunaayen geet koyee
गुनगुनाएं गीत कोई
आओ छेड़ें साज-ए- दिल
एक नयी सरगम बनाए
भूल जाएँ सारे दुःख को
हर्ष का छंद गुनगुनाएं
जिंदगी तो बेवफा है
ना बावफा समझो इसे
रास्ते में फूल ओ' कांटे
जो भी चाहे चुन ले इसे
साफ़ करके मार्ग कंटक
फूल राहों में बिछाएं
हो उजाला नव सृजन का
प्यार का दीपक जलाएं
स्वप्पन बनते और मिटते
क्यों भला कैसे भला
नव रंगों से जीवन चित्रित
है जीवन की अजब कला
आयो समझे जीवन मिश्रण
धूप छाँव से है बना
दुखों की ढलती संध्या में
सुख के सूरज से जला
आओ छेड़ें साज-ए- दिल
एक नयी सरगम बनाए
भूल जाएँ सारे दुःख को
हर्ष का छंद गुनगुनाएं
जिंदगी तो बेवफा है
ना बावफा समझो इसे
रास्ते में फूल ओ' कांटे
जो भी चाहे चुन ले इसे
साफ़ करके मार्ग कंटक
फूल राहों में बिछाएं
हो उजाला नव सृजन का
प्यार का दीपक जलाएं
स्वप्पन बनते और मिटते
क्यों भला कैसे भला
नव रंगों से जीवन चित्रित
है जीवन की अजब कला
आयो समझे जीवन मिश्रण
धूप छाँव से है बना
दुखों की ढलती संध्या में
सुख के सूरज से जला
Talaash
तलाश
एक जीवन
जो जीवंत हुआ
उसके आने से
आज मृत हुआ
उसके जाने से
सन्नाटा है
खामोशी है
चहु और वीराना है
उजड़ा चमन
टूटा आशियाना है
क्यों आये तुम
जब दूर तुम्हे जाना था
अपने पन का प्रपंच क्यों
जब रहना ही बेगाना था
कोरे कागज़ पर
लिख कर
कुछ तदबीर तुमने
बदल ही डाली
हाथ की लकीर तुमने
ना लौट कर आयोगे
मालूम है हमको भी
ना जाने क्यों
तलाशते हैं
हम तुम को ही
एक जीवन
जो जीवंत हुआ
उसके आने से
आज मृत हुआ
उसके जाने से
सन्नाटा है
खामोशी है
चहु और वीराना है
उजड़ा चमन
टूटा आशियाना है
क्यों आये तुम
जब दूर तुम्हे जाना था
अपने पन का प्रपंच क्यों
जब रहना ही बेगाना था
कोरे कागज़ पर
लिख कर
कुछ तदबीर तुमने
बदल ही डाली
हाथ की लकीर तुमने
ना लौट कर आयोगे
मालूम है हमको भी
ना जाने क्यों
तलाशते हैं
हम तुम को ही
yaad tumhari
याद तुम्हारी
शाम ढले जब नील गगन में
हौले से चंदा मुस्काये
याद तुम्हारी संग पवन के
बिना पंख उड़ कर आ जाए
मन के नभ में याद के बादल
उमड़ घुमड़ कर घिर आते हैं
जलकन जैसे नन्हे संस्मरण
शुष्क बदन को नम करते हैं
रात ढले जब तरन ताल पर
नवल चांदनी रस बरसाए
याद तुम्हारी निशिगंधा सी
मेरा मन आँगन महकाए
शाम ढले जब नील गगन में
हौले से चंदा मुस्काये
याद तुम्हारी संग पवन के
बिना पंख उड़ कर आ जाए
मन के नभ में याद के बादल
उमड़ घुमड़ कर घिर आते हैं
जलकन जैसे नन्हे संस्मरण
शुष्क बदन को नम करते हैं
रात ढले जब तरन ताल पर
नवल चांदनी रस बरसाए
याद तुम्हारी निशिगंधा सी
मेरा मन आँगन महकाए
piya se
पिया से!
सखी री! मेरे नैना नीर भरे
कारे बदरा घिर घिर आये
सावन के झूले पड़े
कैसे बढ़ाऊं प्रेम की पींगे
सैया है मोसे लड़े
मोरे नैना नीर भरे
काल रात्रि हुई शरद पूर्णिमा
विधु अंगार बने
साज श्रिंगार वृथा लगत सब
कंटक सेज सजे
मोरे नैना नीर भरे
वासन वासंती, रूप सांवरा
कुंडल कान धरे
पिया मोरे मोहि सुधि लीजो
कर जोरे अरज करें
मोरे नैना नीर भरे
सखी री! मेरे नैना नीर भरे
कारे बदरा घिर घिर आये
सावन के झूले पड़े
कैसे बढ़ाऊं प्रेम की पींगे
सैया है मोसे लड़े
मोरे नैना नीर भरे
काल रात्रि हुई शरद पूर्णिमा
विधु अंगार बने
साज श्रिंगार वृथा लगत सब
कंटक सेज सजे
मोरे नैना नीर भरे
वासन वासंती, रूप सांवरा
कुंडल कान धरे
पिया मोरे मोहि सुधि लीजो
कर जोरे अरज करें
मोरे नैना नीर भरे
shela re
सहेला रे
आ मिल जुल गायें
जन्म मरण का साथ ना भूले
अब के बिछड़े रहा नहीं जाए
सहेला रे!
आ कदम बढायें
विचलित हो पग , पथ ना भूलें
बन संरंक्षक रह दिखाएँ
सहेला रे!
आ हाथ मिलाएं
जीवन की अंतिम वेला तक
सुख दुःख बांटे वचन निभाएं
आ मिल जुल गायें
जन्म मरण का साथ ना भूले
अब के बिछड़े रहा नहीं जाए
सहेला रे!
आ कदम बढायें
विचलित हो पग , पथ ना भूलें
बन संरंक्षक रह दिखाएँ
सहेला रे!
आ हाथ मिलाएं
जीवन की अंतिम वेला तक
सुख दुःख बांटे वचन निभाएं
vire vedna
विरह वेदना
अंसुवन से गीली धरती पर
बिलख रहे हैं मेरे गीत
मद्धम होने लगा सुनो तो
मेरी साँसों का संगीत
विरह की अग्नि में जल कर
भस्म हो गयी कंचन काया
बार एक यह बतला दो
कब आओगे मन के मीत
संग मरण के बुने जो सपने
सांस तोड़ते सिसके-सिसके
तुम आओ तो जीवन जी लूं
चुपके कहती अनबोली प्रीत
गुंजन करती यह ख़ामोशी
मन को समझाये बारम्बार
रच डालें संसार नया एक
ना निभ पाए इस जग की रीत
अंसुवन से गीली धरती पर
बिलख रहे हैं मेरे गीत
मद्धम होने लगा सुनो तो
मेरी साँसों का संगीत
विरह की अग्नि में जल कर
भस्म हो गयी कंचन काया
बार एक यह बतला दो
कब आओगे मन के मीत
संग मरण के बुने जो सपने
सांस तोड़ते सिसके-सिसके
तुम आओ तो जीवन जी लूं
चुपके कहती अनबोली प्रीत
गुंजन करती यह ख़ामोशी
मन को समझाये बारम्बार
रच डालें संसार नया एक
ना निभ पाए इस जग की रीत
chalo le chalo
चलो ले चलो
सागर में उठत हिलोर
ओरे मांझी !
खेवो मोरी नैया
चलो ले चलो तट की और
घिर आये बदरा
कारे कजरारे
छिप गया दिनकर
भागे उजियारे
फ़ैला तिमिर चहुं और
चलो रे चलो
ले चलो तट की और
आशंकित मनवा
आस लगाये
पंथ निहारे
नयन बिछाए
देखे पूरब की और
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
दूर क्षितज़ में
पंख फैलाए
आशा का एक दीप जलाए
बाट ताकत है चकोर
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
दुखियारा मेरा
मन मुरझाये
पिया मिलने को
तडपत हाय
जैसे पतंग संग डोर
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
सागर में उठत हिलोर
ओरे मांझी !
खेवो मोरी नैया
चलो ले चलो तट की और
घिर आये बदरा
कारे कजरारे
छिप गया दिनकर
भागे उजियारे
फ़ैला तिमिर चहुं और
चलो रे चलो
ले चलो तट की और
आशंकित मनवा
आस लगाये
पंथ निहारे
नयन बिछाए
देखे पूरब की और
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
दूर क्षितज़ में
पंख फैलाए
आशा का एक दीप जलाए
बाट ताकत है चकोर
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
दुखियारा मेरा
मन मुरझाये
पिया मिलने को
तडपत हाय
जैसे पतंग संग डोर
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
kam ka kam hai pending hona
काम का काम है पेंडिंग होना
दिन भर क्यों है काम का रोना
काम का काम है पेंडिंग होना
यूं कब तक श्रम करे कोई
यूं कब तक व्यस्त रहे कोई
हरी की कमल नाभ से लम्बे
कैसे काम को ख़तम करे कोई
काम का स्वामी काम देव
जिसको संहारे महादेव
काम का प्याला पी ले जो
भूले सारे जग के भेद
ना दिनमें चैन ना रात में निद्रा
धारण करता मन व्याकुल मुद्रा
प्रयतन करने का काम नियंत्रण
विफल हुआ जाता मानव प्रण
साकाम और निष्काम का भेद
जब करे अंतर्मन तो मिटे क्लेश
इस काम और उस काम का अंतर
जो कर पाए वह सिद्ध योगी वेश
काम गलत तो हुए नाकाम
काम सही तो कामयाब
महिमा जिस की गाये हरी, राम
जो नर समझे वह हुआ नायाब
दिन भर क्यों है काम का रोना
काम का काम है पेंडिंग होना
यूं कब तक श्रम करे कोई
यूं कब तक व्यस्त रहे कोई
हरी की कमल नाभ से लम्बे
कैसे काम को ख़तम करे कोई
काम का स्वामी काम देव
जिसको संहारे महादेव
काम का प्याला पी ले जो
भूले सारे जग के भेद
ना दिनमें चैन ना रात में निद्रा
धारण करता मन व्याकुल मुद्रा
प्रयतन करने का काम नियंत्रण
विफल हुआ जाता मानव प्रण
साकाम और निष्काम का भेद
जब करे अंतर्मन तो मिटे क्लेश
इस काम और उस काम का अंतर
जो कर पाए वह सिद्ध योगी वेश
काम गलत तो हुए नाकाम
काम सही तो कामयाब
महिमा जिस की गाये हरी, राम
जो नर समझे वह हुआ नायाब
ek inch maryaadaa
एक इंच मर्यादा
गिरी के हिम शिखरों पर फैली सुनहरी धूप
नभ में उमड़ घुमड़ते रस छलकाते पानी के कूप
संध्या काल में पानी की गोद में डूबता सूरज
कुसुमावालियों पर चमकते नन्हे पानी के जलकन
जैसे तुम्हारा यह रूप
और इसे छू लेने की कामना
और तुम्हारा भी यूं व्याकुल हो
प्रकृति की तरह मुझ अम्बर में समाना
शायद हो ना पायेगा कभी संभव
क्योंकि इन के बीच फांसला है
एक इंच मर्यादा का
जिसे तोड़ने का साहस
ना तुम में है
और ना मुझ में
गिरी के हिम शिखरों पर फैली सुनहरी धूप
नभ में उमड़ घुमड़ते रस छलकाते पानी के कूप
संध्या काल में पानी की गोद में डूबता सूरज
कुसुमावालियों पर चमकते नन्हे पानी के जलकन
जैसे तुम्हारा यह रूप
और इसे छू लेने की कामना
और तुम्हारा भी यूं व्याकुल हो
प्रकृति की तरह मुझ अम्बर में समाना
शायद हो ना पायेगा कभी संभव
क्योंकि इन के बीच फांसला है
एक इंच मर्यादा का
जिसे तोड़ने का साहस
ना तुम में है
और ना मुझ में
chait chandni
चैत चांदनी
यह चैत चांदनी कहती है
आओ हम दोनों साथ चलें
हाथों में डालें हाथ चलें
कुछ तुम ना कहो
कुछ हम ना कहें
ऐसी कोई बात करें
यह चैत चांदनी कहती है
आओ हम दोनों साथ चलें
हाथों में डालें हाथ चलें
कुछ तुम ना कहो
कुछ हम ना कहें
ऐसी कोई बात करें
kartvay bodh
कर्तव्य बोध
उठो वत्स कर्तव्य निष्ठ हो
यूं कब तक शौक मनाओ गे
उड़ा जा रहा वक़्त पंख बिन
कैसे लौटा कर लाओगे
बीता पल जो वह कल था
पल आने वाला फिर कल होगा
कल और कल की चिंता में
इस पल का चिंतन कब होगा
नियति का यूं मान फैंसला
कब तक ठोकर खाओगे
उठो बढ़ो कर्तव्य निष्ठ हो
स्वयमेव सिद्ध हो जाओगे
उठो वत्स कर्तव्य निष्ठ हो
यूं कब तक शौक मनाओ गे
उड़ा जा रहा वक़्त पंख बिन
कैसे लौटा कर लाओगे
बीता पल जो वह कल था
पल आने वाला फिर कल होगा
कल और कल की चिंता में
इस पल का चिंतन कब होगा
नियति का यूं मान फैंसला
कब तक ठोकर खाओगे
उठो बढ़ो कर्तव्य निष्ठ हो
स्वयमेव सिद्ध हो जाओगे
mera geet diya ban jaaye
मेरा गीत दिया बन जाए
अंधियारा जिस से शरमाये
उजिआरा जिस को ललचाये
ऐसा देदो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दिया बन जाए
इतने अश्रू दो मुझको
हर राहगीर के चरण धो सकूं
इतना निर्धन करो
हर दरवाज़े पर सब खो सकूं
ऐसी पीर भरो प्राणों में
नींद आये ना जन्म-जनम तक
इतनी सुध-बुध हरो
सांवरिया खुद बांसुरी बन जाए
ऐसा देदो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दिया बन जाए
अंधियारा जिस से शरमाये
उजिआरा जिस को ललचाये
ऐसा देदो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दिया बन जाए
इतने अश्रू दो मुझको
हर राहगीर के चरण धो सकूं
इतना निर्धन करो
हर दरवाज़े पर सब खो सकूं
ऐसी पीर भरो प्राणों में
नींद आये ना जन्म-जनम तक
इतनी सुध-बुध हरो
सांवरिया खुद बांसुरी बन जाए
ऐसा देदो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दिया बन जाए
prem ki saankal
प्रेम की सांकल
मन के द्वारे
प्रेम की सांकल
तुम आओ तो खोलूँ
रजनी का आँचल लहराय
सारा आलम जब सो जाए
अमवा डाली डाल हिंडोल
संग तुम्हारे डोलूँ
वीणा स्वर मंजरियाँ चुप हैं
गीतों की धुन गुम-सुम गुम-सुम
प्रेम मजुषा आसव पी कर
मधुकर गुंजन बोलूँ
मृत अंतस हो जीवन सिंचित
संचारित नव चेतंताय
पूरण परम पद पा जायूं
एक बार तुम्हे हो लूं
मन के द्वारे
प्रेम की सांकल
तुम आओ तो खोलूँ
रजनी का आँचल लहराय
सारा आलम जब सो जाए
अमवा डाली डाल हिंडोल
संग तुम्हारे डोलूँ
वीणा स्वर मंजरियाँ चुप हैं
गीतों की धुन गुम-सुम गुम-सुम
प्रेम मजुषा आसव पी कर
मधुकर गुंजन बोलूँ
मृत अंतस हो जीवन सिंचित
संचारित नव चेतंताय
पूरण परम पद पा जायूं
एक बार तुम्हे हो लूं
kh maa
कह माँ
नाना हम से क्यों रूठे हैं
तोता मैना के किस्से कहते
चिरिया बुलबुल की बातें करते
कैसे चुप हो कर बैठे hain
पल्लू से पोंछी भीगी पलकें
बालक को बाहों में भर के
आसमान में इंगित करके
मां बोली फिर साहस भर के
सप्त ऋषि के पीछे चमके
आसमान में जो सुंदर तारा
वही तो हो विश्वाश हमारा
तेरा नाना अब सब का प्यारा
नाना हम से क्यों रूठे हैं
तोता मैना के किस्से कहते
चिरिया बुलबुल की बातें करते
कैसे चुप हो कर बैठे hain
पल्लू से पोंछी भीगी पलकें
बालक को बाहों में भर के
आसमान में इंगित करके
मां बोली फिर साहस भर के
सप्त ऋषि के पीछे चमके
आसमान में जो सुंदर तारा
वही तो हो विश्वाश हमारा
तेरा नाना अब सब का प्यारा
kaise tum ko paanoo
कैसे तुम को पाऊँ
कैसे ढूँढू कहाँ जाऊ
तुम्ही कहो , तुम्हे कैसे पाऊ
ढूंढें मैंने स्थान वह सारे
जहां बीते जीवन संग तुम्हारे
सूना घर आँगन वन उपवन
सूना मन का है नंदनवन
कैसे अब तुम्हरी सुधि पाऊ
कैसे ढूँढू , कहाँ जाऊ
किस से करूंगी क्षमा-याचना
किसको मैं अब दूं निमंत्रण
कौन पूछेगा प्रश्न व्यथा के
कौन करेगा उत्साह वर्धन
कैसे इस मन को समझाऊँ
तुम्ही कहो तुम्हे कैसे पाऊँ
जब विदा किया पर साल था तुमने
लिया था वादा अंक मैं भर के
पुनह लौट कर जब भी आना
आना मेरे ही द्वारे सज के
विस्मित खड़ी आज चौराहे पर
हुई अचंभित किस दिशी जाऊं
कैसे ढूँढू कहाँ जाऊ
तुम्ही कहो तुम्हे कैसे पाऊँ
कैसे ढूँढू कहाँ जाऊ
तुम्ही कहो , तुम्हे कैसे पाऊ
ढूंढें मैंने स्थान वह सारे
जहां बीते जीवन संग तुम्हारे
सूना घर आँगन वन उपवन
सूना मन का है नंदनवन
कैसे अब तुम्हरी सुधि पाऊ
कैसे ढूँढू , कहाँ जाऊ
किस से करूंगी क्षमा-याचना
किसको मैं अब दूं निमंत्रण
कौन पूछेगा प्रश्न व्यथा के
कौन करेगा उत्साह वर्धन
कैसे इस मन को समझाऊँ
तुम्ही कहो तुम्हे कैसे पाऊँ
जब विदा किया पर साल था तुमने
लिया था वादा अंक मैं भर के
पुनह लौट कर जब भी आना
आना मेरे ही द्वारे सज के
विस्मित खड़ी आज चौराहे पर
हुई अचंभित किस दिशी जाऊं
कैसे ढूँढू कहाँ जाऊ
तुम्ही कहो तुम्हे कैसे पाऊँ
dil to hai dil
दिल तो है दिल
दिल तो आखिर दिल ही रहेगा
हो तुम दूर ,पर पास हो मेरे
कैसे यह विश्वास करेगा
छू लेते बस हाथ तुम्हारा
जीवन भर यह त्रास रहेगा
संग तुम्हारे बीतें पल फिर
जन्मान्तर तक आस करेगा
पुनह छोड़ कर ना जाओ गे
ऐसा क्या परिहास करेगा ?
दिल तो आखिर दिल ही रहेगा
दिल तो आखिर दिल ही रहेगा
हो तुम दूर ,पर पास हो मेरे
कैसे यह विश्वास करेगा
छू लेते बस हाथ तुम्हारा
जीवन भर यह त्रास रहेगा
संग तुम्हारे बीतें पल फिर
जन्मान्तर तक आस करेगा
पुनह छोड़ कर ना जाओ गे
ऐसा क्या परिहास करेगा ?
दिल तो आखिर दिल ही रहेगा
swappan main papa
स्वप्पन में पापा
रात स्वप्पन मे आकर सहसा
तुमने जो आवाज़ लगाई
अर्धचेतन विक्षिप्त अवस्था से
जैसे मैंने सुधि पाई
ब्रह्म अनामय रूप निरख कर
ज्ञान विधा विधुत लहराई
परम तत्त्व में हों विलीन हम
जीवन भर इच्छा यही पाई
काल चक्र से हुआ मुक्त जब
क्यों मन देने लगा दुहाई
ना हो क्षोभित ना हो व्याकुल
अब ना कर मन को यूं सौदाई
उठो बढ़ो जियो वर्तमान में
श्रम तप धीरज की बात दोहराई
अवसादों का वसन हटा कर
खुशियों की चादर औडाई
अकस्मात फिर टूटी तंत्रा
टूटा स्वप्पन खुल गयी निद्रा
रस से सराबोर था तन मन
और ना था अब धूमिल जीवन
तुम्हे अंगीकार किया ईश्वर ने
जान बहुत मैंने सुख पाया
बहुत दिनों से निद्रालु था
पुनह निद्रा के अंक समाया
रात स्वप्पन मे आकर सहसा
तुमने जो आवाज़ लगाई
अर्धचेतन विक्षिप्त अवस्था से
जैसे मैंने सुधि पाई
ब्रह्म अनामय रूप निरख कर
ज्ञान विधा विधुत लहराई
परम तत्त्व में हों विलीन हम
जीवन भर इच्छा यही पाई
काल चक्र से हुआ मुक्त जब
क्यों मन देने लगा दुहाई
ना हो क्षोभित ना हो व्याकुल
अब ना कर मन को यूं सौदाई
उठो बढ़ो जियो वर्तमान में
श्रम तप धीरज की बात दोहराई
अवसादों का वसन हटा कर
खुशियों की चादर औडाई
अकस्मात फिर टूटी तंत्रा
टूटा स्वप्पन खुल गयी निद्रा
रस से सराबोर था तन मन
और ना था अब धूमिल जीवन
तुम्हे अंगीकार किया ईश्वर ने
जान बहुत मैंने सुख पाया
बहुत दिनों से निद्रालु था
पुनह निद्रा के अंक समाया
kaise likhoon
कैसे लिखूं
उर की बात कहूं कैसे
कैसे जिह्वा तक लायूं मैं
कैसे झेलूँ मन संताप
कैसे मन को समझाऊँ मैं
निज रोदन को राग बनाया
तार सप्तक से स्वर मिलाया
हृदय वेदना कम करने को
नयनों ने फिर नीर बहाया
कंठ हुया अवरुद्ध जान
भावों को लेखन ने संभाला
भावों की पीड़ा को अनुभव कर
लेखन भी निस्तेज हो गया
अब तुम्ही कहो मैं कैसे लिखूं
उर की बात कहूं कैसे
कैसे जिह्वा तक लायूं मैं
कैसे झेलूँ मन संताप
कैसे मन को समझाऊँ मैं
निज रोदन को राग बनाया
तार सप्तक से स्वर मिलाया
हृदय वेदना कम करने को
नयनों ने फिर नीर बहाया
कंठ हुया अवरुद्ध जान
भावों को लेखन ने संभाला
भावों की पीड़ा को अनुभव कर
लेखन भी निस्तेज हो गया
अब तुम्ही कहो मैं कैसे लिखूं
rachna
रचना
जब शांत धरा का कोलाहल
मन को उकसाने लगता है
जब शांत गिरी का आँचल भी
वज्र गिराने लगता है
पानी की नन्ही बूंदों पर
तूफ़ान मचलने लगता है
तब वैरागी पागल मन
कविता रचने लगता है
जब शांत धरा का कोलाहल
मन को उकसाने लगता है
जब शांत गिरी का आँचल भी
वज्र गिराने लगता है
पानी की नन्ही बूंदों पर
तूफ़ान मचलने लगता है
तब वैरागी पागल मन
कविता रचने लगता है
aansoo nahi to aur kya hai
आंसू नहीं तो और क्या है
शांत धरा के अंतस में
भावों के बिखरे कुण्डों से
जब पानी के चश्मे बहते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
उत्कंठित धीर गगन से जब
नीरद वृष्टि करता है
पानी की नन्ही वह बूंदे
आंसू नहीं तो और क्या है
सुडोल गिरी के अंचल से
अंतर्मन से स्रावित हो
जब निर्झर फूटा करते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
मानव मन का ज्वाला मुखी
अवसादों का लावा लेकर
जब आँखों से बहता है
वह आंसू नहीं तो और क्या है
शांत धरा के अंतस में
भावों के बिखरे कुण्डों से
जब पानी के चश्मे बहते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
उत्कंठित धीर गगन से जब
नीरद वृष्टि करता है
पानी की नन्ही वह बूंदे
आंसू नहीं तो और क्या है
सुडोल गिरी के अंचल से
अंतर्मन से स्रावित हो
जब निर्झर फूटा करते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
मानव मन का ज्वाला मुखी
अवसादों का लावा लेकर
जब आँखों से बहता है
वह आंसू नहीं तो और क्या है
aansoo maun ho gya
और मेरा आंसू मौन हो गया
दिल जब पिघला, आँखों से निकला
गालों पर आकर गौण हो गया
मेरा आंसू मौन हो गया
हर आँगन सूना सूना सा
हर वीथि रीती रीती सी
हर दस्तक सहमा सहमा सा
हर आहट फीकी फीकी सी
बंधन छूटे रिश्ते झूठे
प्यार के धागे बेबस हो टूटे
एक दूजे पर आश्रित प्राणी
सहसा रिश्ते में कौन हो गया
मेरा आंसू मौन हो गया
दिल जब पिघला, आँखों से निकला
गालों पर आकर गौण हो गया
मेरा आंसू मौन हो गया
हर आँगन सूना सूना सा
हर वीथि रीती रीती सी
हर दस्तक सहमा सहमा सा
हर आहट फीकी फीकी सी
बंधन छूटे रिश्ते झूठे
प्यार के धागे बेबस हो टूटे
एक दूजे पर आश्रित प्राणी
सहसा रिश्ते में कौन हो गया
मेरा आंसू मौन हो गया
Tum kya jaano hridye ki peeda
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
तुम ने तो उन्मुक्त गगन में
कलरव करते देखे पक्षी
दिन भर करते क्रीडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो खग कैसे सोता
क्या जानो खग कैसे रोता
कहीं दूर वह दाना चुगने
दिन भर उड़ता फुगने फुगने
सांझ ढले तो चले चाँद संग
ढूंढें अपना नीड़ा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो मिलने को तड़पे
क्या जानो वह मिल कर तड़पे
सारा दिन वह व्याकुल रहता
हर आहट पर चौंक के उठता
चौंच उठाये वह राहें तकता
भूले अपनी ईडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
तुम ने तो उन्मुक्त गगन में
कलरव करते देखे पक्षी
दिन भर करते क्रीडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो खग कैसे सोता
क्या जानो खग कैसे रोता
कहीं दूर वह दाना चुगने
दिन भर उड़ता फुगने फुगने
सांझ ढले तो चले चाँद संग
ढूंढें अपना नीड़ा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो मिलने को तड़पे
क्या जानो वह मिल कर तड़पे
सारा दिन वह व्याकुल रहता
हर आहट पर चौंक के उठता
चौंच उठाये वह राहें तकता
भूले अपनी ईडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
kho gya re mera bachpan
खो गया रे मेरा बचपन
तुम क्या रूठे ,सब जग रूठा
पीहर से भी नाता छूटा
देख विषमता मनोबल टूटा
कैसी यह जीवन की उलझन
खो गया रे मेरा बचपन
आज फूल भी लगे शूल सा
तप्त लगें नम हवा के झोंके
सब के गल का फांस बन गयी
जो थी हर एक दिल की धड़कन
खो गया रे मेरा बचपन
काल चक्र यूं चलता जाए
अमिट छाप यूं गढ़ता जाए
मस्तक की धुंधली रेखाएं
होने ना देती परिवर्तन
खो गया रे मेरा बचपन
तुम क्या रूठे ,सब जग रूठा
पीहर से भी नाता छूटा
देख विषमता मनोबल टूटा
कैसी यह जीवन की उलझन
खो गया रे मेरा बचपन
आज फूल भी लगे शूल सा
तप्त लगें नम हवा के झोंके
सब के गल का फांस बन गयी
जो थी हर एक दिल की धड़कन
खो गया रे मेरा बचपन
काल चक्र यूं चलता जाए
अमिट छाप यूं गढ़ता जाए
मस्तक की धुंधली रेखाएं
होने ना देती परिवर्तन
खो गया रे मेरा बचपन
सदस्यता लें
संदेश (Atom)